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गृहारंभ में नक्षत्र फल शुभ और चन्द्रमा प्रबल देखकर अधोमुख संज्ञक नक्षत्र में खात मुहूर्त करना चाहिए तथा शुभ लग्न एवं चन्द्रमा बलवान हो तब ऊर्ध्वमुख संज्ञक नक्षत्र में शिला का स्थापन करके मकान बनाने का आरंभ करना चाहिए।
(तात्पर्य : अधोमुख नक्षत्र में खात और ऊर्ध्वमुख में शिलास्थपन)
मांडव्य ऋषि का कहना है
अधोमुख नक्षत्रों में खात करना चाहिए, ऊर्ध्वमुख नक्षत्रों में शिला और पट्ट (पाटड़े) आदि का स्थापन करना चाहिए । तिर्यङमुख नक्षत्रों में द्वार, कपाट और वाहन बनाने चाहिए, मृदुसंज्ञक (मृगशिरा, रेवती, चित्रा और अनुराधा ) तथा ध्रुवसंज्ञक (ऊत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपदा, रोहिणी) नक्षत्रों में गृहप्रवेश करना चाहिए।
नक्षत्रों की अधोमुखादि संज्ञा
श्रवण, आर्द्रा, पुष्य, रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, शतभिषा और धनिष्ठा - ये नौ नक्षत्र ऊर्ध्वमुख नामवाले हैं। भरणी, आश्लेषा, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपदा, मूल, मघा, विशाखा और कृत्तिका ये नौ नक्षत्र अधोमुख नामवाले हैं ।
इनके अतरिक्त बाकी के अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, ज्येष्ठा और रेवती ये नव नक्षत्र तिर्छामुख वाले है ।
नक्षत्रों के शुभाशुभयोग मुहूर्त चिंतामणि में कहते हैं कि - पुष्प, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, रोहिणी, मृगशिरा, श्रवण, आश्लेषा और पूर्वाषाढ़ा इन नक्षत्रों में से किसी नक्षत्र पर गुरु हो तब अथवा ये नक्षत्र और गुरुवार हो तब अगर घर का आरंभ किया जाय तो यह घर पुत्र एवं राज्य देनेवाला बनता है ।
विशाखा, अश्विनी, चित्रा, धनिष्ठा, शतभिषा और आर्द्रा इन नक्षत्रों में से किसी नक्षत्र पर शुक्र हो तब अथवा ये नक्षत्र और शुक्रवार हो तब अगर घर का आरंभ किया जाय तो वह घर धन और धान्य की प्राप्ति करानेवाला बनता है ।
हस्त, पुष्य, रेवती, मघा, पूर्वाषाढ़ा, मूल इन नक्षत्रों पर अगर मंगल हो तब अथवा ये नक्षत्र और मंगलवार हो तब अगर घर का आरंभ किया जाय तो वह घर अग्नि जल जाता है और पुत्रों के लिए पीडाकारक होता है ।
रोहिणी, अश्विनी, उत्तराफाल्गुनी, चित्रा और हस्त इन नक्षत्रों पर बुध हो तब अथवा ये नक्षत्र और बुधवार हो तब अगर घर का आरंभ किया जाय तो वह घर सुखदायक तथा पुत्रदायक बनता है ।
जन-जन का
वास्तुसार
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