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* गृहराशियंत्र * | मेष | वृष | मिथुन | कर्क | सिंह कन्या | तुला | वृश्चिक धन | मकर| कुंभ | मीन | 1 | 2 | 3 | 4 | 5-
6 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 अश्विनी| रोहिणी| आर्द्रा | पुष्य | मधा | हस्त | स्वाति अनुराधा मूल | श्रवण शतभिषा उ.भा. भरणी मृगसिर पुनर्वसु आश्लेषा पू.फा. चित्रा विशाखा ज्येष्ठा पू.षा. धनिष्ठा पू.भा. रेवती कृतिका| 0 | 0 | 0 उ.फा. 0 | 0 | उ.षा. ० | 0 | 0 | व्यय लाने का प्रकार
घर के नक्षत्रों की संख्या को आठ से विभाजित करें, जो शेष बचे उसे व्यय समझें। यक्ष,राक्षस और पिशाच येतीन प्रकार के व्यय हैं। आय की संख्या सेव्यय की संख्या कम हो तो यक्ष नाम का व्यय, अधिक हो तो राक्षस व्यय और बराबर हो तो पिशाच व्यय समझना चाहिए। व्यय का फल
घर का व्यय अगर यक्षव्यय हो तो धन धान्यादि की वृद्धि होती है। राक्षस व्यय हो तो धनधान्यादि का विनाश होता है और अगर पिशाच व्यय हो तो मध्यम फलदायक होता है। नीचे दिये गये तीन अंशों में से यम नामक अंश को छोड़ देना चाहिए। अंश लाने का प्रकार
घर के क्षेत्रफल की संख्या, ध्रुव आदि घर के नामाक्षर की संख्या और व्यय की संख्या इन तीनों को जोड़कर तीन से विभाजित करें। जो शेष रहे वह अंश है। शेष एक रहे तो इंद्र अंश, दो रहे तो यमअंश, और शून्य रहे तो राज अंशजाने। तारा की समझ
घर के नक्षत्र से घर के स्वामी के नक्षत्र तक गिनें, जो संख्या मिले उसे नौ से विभाजित करें, जो शेष रहे वह तारा है। इन में छठी, चौथी और नववीं तारा शुभ हैं। दूसरी, पहली और आठवीं तारा मध्यम फलदायी है। तीसरी, पाँचवी और सातवीं तारा अधम है। आय आदि जानने का उदाहरण
मानों घर बनाने की भूमि 7 हाथ और 9 अंगुल लंबी है तथा 5 हाथ और 7 अंगुल चौड़ी है। प्रथम हाथ के अंगुल बनाने के लिए हाथ को 24 से गुणित करें - 7x24 = 168 + 9 = 177 अंगुल लंबाई हुई। 5 x 24 = 120 + 7 = 127 अंगुल चौड़ाई
जैन वास्तुसार
जन-जन का
याल
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