Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar View full book textPage 8
________________ उसी रूप में उसकी नकल करके दी गई है । उसमें यह लिखा हुआ है कि १६६ गोत्रों की जूनी वार्त्ता जेसलमेर के प्राचीन वहियावट के आधार से लिखी गई है । वह जेसलमेर की मूल प्रतिमिल जाती तो बहुत ही अच्छा होता । अभी हमारे संग्रह में इस सम्बन्ध में एक पत्र और मिला है, उसमें "ख्यात झूने दफतर सूं उतारी छे सवाई जयपुर में" लिखा है, वह प्राचीन दफ्तर बही कब की लिखी हुई और कहाँ पर है, पता लगाना आवश्यक है । श्रीमाल और ओसवाल गोत्र सूची के बाद पीपाड़ा गोत्र से लेकर गेलड़ा गोत्र तक का विवरण स्वर्गीय उपाध्याय लब्धिमुनि जी रचित संस्कृत खरतर गच्छ वृहद्गुर्वावली के हिन्दी - सार रूप में लिखा गया है । इस गुर्वावली में बर्द्धमानसूरिजी से लेकर जिनहंससूरिजी तक के आचार्यों की जीवनियों में उन आचार्यों ने, जिन जिन गोत्रों की स्थापना की, उसका आचार्य वार विवरण दिया हुआ है । अतः हमारे इन गोत्रों के प्रतिबोध विवरण का आधार लब्धिमुनिजी की उक्त गुर्वावली को ही समझना चाहिए । पृ० ३३ में बलाहियों की उत्पत्ति का संवत् १६४१ दिया है पर उसमें प्रतिबोधक आचार्य का नाम नहीं लिखा है फिर भी संवत् को ध्यान में रखते हुए, अकबर प्रतिबोधक जिनचन्द्रसूरिजी के समयका वह प्रसंग निश्चित होता है । इन यु० जिनचंद्रसूरिजी के पश्चात् नई गोत्र स्थापना का कोई विवरण नहीं मिलता । महन्तयाण जाति के सम्बन्धमें हम 'मणिधारी जिनचंद्रसूरि' ग्रंथ में अधिक जानकारी प्रकाशित कर चुके हैं। अतः इस सम्बन्ध में हमारे उक्त ग्रंथ के नये संस्करण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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