Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar
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इम कूकड चोपडा बद्ध गोत्र खरतर । जातिरा पडिहार मंडोवरा । गुणधर चोपडा गोत्र खरतर । जातिरा पंवार राजा हंसार ना, प्रधान कायथ माथुर तेजसी कहै हम्हारै धणी के वली डील सूडो नहीं जो बेटा होइ तौ तो तुम्हारे श्रावक हम्ह हवां । तिवारे गुरे नालेर पवार सांमवत जी ने मंत्री दीधा ते राणी नै दे खवाया, नवे मासे बेटा हुवा, वा गुरे 'गुणधर' नाम देई खरतर श्रावक कीया ।
भणशाली भणशाली बद्ध गोत्र खरतर । राय भणशाली १ खड़ भणशाली २ चंडालीया भणशाली ३ ए तीने भणशाली बद्ध गोत्र खरतर । भणसाली गोत्र थापना सं० १२०९ बैसाखी पूर्वी १५ दिने एक गुरु श्री जिनदत्तसूरिजी रो डील सूडौ न हुयो तब आपरा अठारै माणस गुरां ऊपरि उवारणे कीया । आठ बेटा आठ बेटा रीबहु १६ वली आप १७ आपरी अठारमी बहू १८ इम गुरु साव चेत हुया । तब जोगणी ६४ गुरे खीली । अठारे माणस तुरत समाधि करी अठारै कोडि द्रव्य घरे अखूट कीया इम राय भणसाली सोलंकी १ खड़ भणसाली भाटी गुरे खड रखाया तठा थी खड़ भणसाली गोत्र खरतर । चंडालिया भणसाली पवार रजपूत । ३।
ए पतिसाह अलावदी बंदि दीधी। तब देवसीसाह को म्हे तो हलालखोर छां जी । तठाथी सगेह सतेह चंडालिया कहता गोत्र हुंआ । अथवा ढेढां रै माथै लहणां हुँता ते न चै । तब ढेढां री कुंवारी परनता बनोला रे मिस घरमें तेडी रोक राखी । जान वाले डेढे द्रव्य देई
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