Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar
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रुपीयो लाहणि दीधी । तिके गूजरोतमाहें अमदाबाद तठे हुया || सोमजी साह रो बेटौ संघवी रूपजी वो हुवो। जिणि सेजै रा वारे वार संघ कराया। एक ट्रंक श्री मरुदेवाजी रौ तठे पाखती गढ करायौ । 'हेक ट्रंक आयो खरतर हथि, हेक ट्रंक चौरासी गच्छ हथि । “इमगीत है तेनाथी समझिज्यो जी ।
वली रूपजी सोमजी उत संघवी उपाध्याय श्री भूवनकीर्तिजी पासि इग्यारै अंग सांभलिया । अबे ब्राह्मण ने सतावीस पाट माहे उपाध्याय पद न हुंता ते मोकला करी । बावीस सय मुहमदी खरची ।
सम्वत् १६९४ वर्ष मगसिर वदि ४ दिने अहमदाबाद माहें श्री शान्तिनाथ जी रा देहरा मांहे भुवनकीरतिजी नै उपाध्याय पद दीधा । भट्टारक श्रीपूज्य श्री जिनराजसूरिजी आप बैठा थकां पद दीधा सही । भट्टारक श्री जिनराजसूरिजी पहिली पद देवारी कही नैपछै पतली यया । तिणि बात ऊपरि पोरवाड़ रूपजी संघवीयें आपणा बोल ऊपरि किया ८५ ।
मुंहतीयाण गोत्र लहुड़ी स्राखा वाला सर्व खरतर " मुद्दतीयांण दोइनमै श्री जिनचन्द ।” पूरबरी धरती माहे हजारे ग्यांने छै ते सर्व खरतर गच्छ रा श्रावक छे । संग्राम सरीखा जिणि ८४ देवलो कराया । ८६ । श्रीमाल गोत्र एक सौ पांत्रीस . १३५ तिणि मांहे ऊगण्यासी गोत्र खरतर छे । एवंकारे उसवाल गोत्र ८४ । पोरवाड़ पंचायणेचा । मुँहतीया गोत्र सर्व । ८६| श्रीमाल गोत्र मांहे सर्व ७४ एवंकारे सर्व खरतर गच्छ गोत्र संख्या १६६ छै ।
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