Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar

View full book text
Previous | Next

Page 68
________________ ५७ भणसालीयाँ री उतपत्त लिख्यते सोलंकी राजपूत नख । सं० २०११ असोज सुदि १० दिनै चालुक बंस श्रीवर्द्धमानसूरजी थाप्यो । रतनपाल पुण्यपाल नै, भणाव्या, पितानी वाचा भई, गुरे गोत्रजा आराधी, जीने पूछीयौ, परमेसरी कीयो- उस बाल वीसौ थापजो, जद राय भणसाली गोत्र थाप्यो । गोत्रजा पीलोज, वाहन सिंह, परणावी जालोर दीधौ, देवगुर भक्ति करे। बेटौ जायों परूसे दीयै सेर १० गोत्र गोह री करै । गोत्रज निमत नालेर १ कापडौ १ रूपौमासा ६ री सांकली चढावे, परण्यौ पीण हीजदिराडी दिन उलंघनही, गोत्रज पूजा ८ दिन । जगपाल के डेरा भणसाली गोत्र मारवाड़ में छै । भणसाली पुण्यपाल थी मुंहता विरुद राणाजी श्री हमीरसंघजी दीयौ, चितौड़मध्ये संपूर्ण । || रतनपुरा बोरा मे सुं कटारीया गोत्र नीकल्यौ तिणरी वंशावली ॥ मनरंग देव । पुत्र धनपाल । एक दिन उद्यान वन खण्ड में रात्र पड़ गई, तीसे सीकार चढ्यौ हुँतौ सो तीहां वन में सरप डस्यौ सो मृत्यु पाम्यौ, अचेत रह्यो । तीसै श्रीजिनदत्तसूरिजी खरतर गच्छ नायक तिहां आवी नीकल्या । धनपाल नै अचेत देखी पाणी मंत्री छांटीयो, तीवारै सावचेत थयौ तीवारे हाथ जोड़ अरज कीधी-सामी नगर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 66 67 68 69 70 71 72 73 74