Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ परिशिष्ट-२ कमाणी संघवी मांडवगढ में देवड़ा समरसंघ राज करै, तिणरा बेटा ७। तिणमें छोटो बेटौ करमसंघ, तिणनै कामडीयौ जैर हुवौ । तीण समै सं० १०२६ वैसाख सूद ९ नै श्री जिनवरधमानसूरिजी विचरता उठे आय नीकल्या, जद राजा समाचार सुण्या, जद् वांदणने गया नै कयौ-के मारौं छोटौ बेटो कमौ नाम, जीण नै जेहर हुवौ सो आप उपगार करौ । 'जद महाराज पाणी मंत्र नै छांटीयौ, जद सावचेत हुयो, नवकार मंत्र लीयो । - श्री सिद्धाचलजी रौ सं० १०२६ मिगसर सुद् ९ संघ काढीयौ, हजार ४१ रुपीया खरचीया। साहमीवछल कीयौ जद महाराज सिंघवी पदरी माला आरोपण करी, जिणसुं कमाणी संघवी' गोत्र थापना हुई । मेरू जेसलमेर नौ छै। इणारी फली मालवा में घणी छै। ताल भोपाल कनै, फेर चंडी ग्रामे छै। मेवाड़ में, फेर जेपर में घर छै । ३ में दीली मैं छै सौ दादाजी रा पगला कराया नै आषाढ सुद १५ पूजे तौ धन दौलत परवार वधै० न्हीं तो न्हो वधे औ वरदान दीयौ छै, गछ खरतर गछ ना श्रावअ हुया। खयात जूनै दक्तर सुं उतारी छ, सवाई जैपुर में । अथ वछांवतां री वंशावली वछावत चउवाण छै । चउवाणरी चौवीस खांप छै, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74