Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ १९ हाहाकार हुआ घर हाथी । सत कर चली सती हुय साथी ॥ मिल आये मानव मीण धारी । वेग हुवौ म करो काइ वारी ||७|| समे तेणे रिषराव चोमासे । आया जिनदत्तसूरि उलासे ॥ उछरंग सकल संघ उचारि । तिण सामेले कीध तयारी ||८|| जब आ खबर सुणी जिणदत्तं । मंत्री लूण पामीयो मृत्तं ॥ जाय कहो हाथी इण जप्पे । जो जीवाडां जैन धर्म प्ये ॥९॥ सुनि श्रावक मूक्यौ समझावी । धर चंपे पुहतो ओ धाई || तिहां लापे कज कीध तयारी । उन मानव मुख एह उचारी ॥ १०॥ कहै रिषि एम सुणो सह कोई । जो जीवाडं जैन धर्म होई । प्रजा हाथी सह को परफुलं । कहीं बात सह कीध कबूलं ॥ ११॥ पांच सात गया रिषि पासे । जीवाड़ो साह जैन भ्रम आसे । एह वयण सुणी रिष आये । पास हुँता सह लागा पाए ॥१२॥ तब पड़दा चिडु पास तणाया । पुरुष त्रिया मांचे पोढाया ॥ मंत्र पढे विष तेडे मुनिवर । कह्यो एम इण सरजीवत कर ||१३| फणधर चढे चूस विष फिरियो । घड़ी मांहि सास उस घिरीयो । बाजा फिर मंगलीक बजाया । कोड़ भांत कर उछरंग कराया ॥१४॥ व्याह जेम घर बांटी वधाई । धन-धन हाथी तुज्झ कमाई ॥ पुत्र लुणो अचल पद पायो । दिन दिन दीपो बड़ + घर दावो ॥१५२॥ ॥ दुहा ॥ धीगडमल मुलताण धर, जिनदत्तसूरह जाय । श्रावक कीध महेसरी, दीया वंस दीखाय ॥ १६ ॥ + तेज सवायो । देवायंस | Jain Education International For Personal & Private Use Only 1 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74