Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar
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हाहाकार हुआ घर हाथी । सत कर चली सती हुय साथी ॥ मिल आये मानव मीण धारी ।
वेग हुवौ म करो काइ वारी ||७|| समे तेणे रिषराव चोमासे । आया जिनदत्तसूरि उलासे ॥ उछरंग सकल संघ उचारि । तिण सामेले कीध तयारी ||८|| जब आ खबर सुणी जिणदत्तं । मंत्री लूण पामीयो मृत्तं ॥ जाय कहो हाथी इण जप्पे । जो जीवाडां जैन धर्म प्ये ॥९॥ सुनि श्रावक मूक्यौ समझावी । धर चंपे पुहतो ओ धाई || तिहां लापे कज कीध तयारी ।
उन मानव मुख एह उचारी ॥ १०॥ कहै रिषि एम सुणो सह कोई । जो जीवाडं जैन धर्म होई । प्रजा हाथी सह को परफुलं । कहीं बात सह कीध कबूलं ॥ ११॥ पांच सात गया रिषि पासे । जीवाड़ो साह जैन भ्रम आसे । एह वयण सुणी रिष आये । पास हुँता सह लागा पाए ॥१२॥ तब पड़दा चिडु पास तणाया । पुरुष त्रिया मांचे पोढाया ॥ मंत्र पढे विष तेडे मुनिवर । कह्यो एम इण सरजीवत कर ||१३| फणधर चढे चूस विष फिरियो । घड़ी मांहि सास उस घिरीयो । बाजा फिर मंगलीक बजाया ।
कोड़ भांत कर उछरंग कराया ॥१४॥ व्याह जेम घर बांटी वधाई । धन-धन हाथी तुज्झ कमाई ॥ पुत्र लुणो अचल पद पायो ।
दिन दिन दीपो बड़ + घर दावो ॥१५२॥
॥ दुहा ॥
धीगडमल मुलताण धर, जिनदत्तसूरह जाय । श्रावक कीध महेसरी, दीया वंस दीखाय ॥ १६ ॥
+ तेज सवायो । देवायंस |
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