Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar
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सो गया । प्रातः काल तीनों छाजे स्वर्णमय देख कर बड़ा प्रसन्न हुआ। सभी लोग इस चमत्कार को देख कर आनन्द मग्न हो गए । काजलने गुरुमहाराज से प्रतिबोध पाकर सम्यक्त्व मूल बारह व्रत स्वीकार किये। गुरु महाराज ने 'छाजहड़' गोत्र की स्थापना की ।
सालेचा-बोहरा .. संवत् १२१५ में गुरु महाराज श्री जिनचन्द्रसूरि जी ने सालमसिंह दइया क्षत्रिय को प्रतिबोध दिया। सियालकोट में वोहरगत करने से सालेचा बोहरा गोत्र प्रसिद्ध हुआ ।
श्रीमाल जाति गौतमस्वामी, रत्नप्रभसूरि आदि ने पहले श्रीमालपुर में जो श्रीमाल जाति प्रतिबोध की थी वे शंकराचार्य के दिग्विजय के समय कपोलादि वणिक जाति के शैव हो गये। मारवाड़ादि में श्री जिनचन्द्रसूरिजी ने विचर कर पुनः श्रीमाल जाति बोधित की। हेमचन्द्राचार्य कुमारपाल प्रतिबोधक ने भी सोरठीया श्रीमालों को प्रतिबोध दिया।
उद्धरण छाजहड .. एक वार श्री जिनपतिसूरिजी ने अजमेर चातुर्मास में रामदेवादि के समक्ष प्रसंगवश खेड़ निवासी उद्धरणसाह मन्त्री की प्रशंसा की। रामदेव उद्धरण से जा कर मिला। उसने सेठ रामदेव को बहुत ही सम्मानित किया। उसने मन्त्रि-पत्नी को जिनालय जाते समय छाब भर के साडियाँ आदि ले जाते देखा तो आश्चर्य पूर्वक नौकर से इसका
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