Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar
View full book text
________________
दोहा-संवत इग्यार व्यासी समें, विषधर नौ विष टाल ।
जीवाड्यौ धनपाल ने, सद्गुरु एहवो भाल ॥१॥ हिवै खरतर गच्छ रा श्रावक छै तिके आषाढ मुदि ११ दिने दादाजी जिनदत्तसूरिजी रा पगला तोला १। घडावी प्रतिष्ठा करावी पूनम पूनम पूजीजैतौ वंस वधै लक्ष्मी सौभागय यश वधै । हिवै रत्नपुरा गोत्र साखा तेहना नाम रत्नपुरा १ बलाही २ कटारीया ३ कोटेचा ४ सापद्रहा ५ सामरीया ६ नराण गोत्रा ७ भलाणीया ८ रामसेणाऔं ९ साखा कटारिया सहवाजरा उठ्या कैरुंवास, देवातडै, आसरलाइ में साख १२ इहां नख थयौ कटारिया में नख नीकल्यौ गौरी पातसाह रो मन्त्री पणौ कीधौ तिणथी मन्त्री कहाणा मांडवगढे मुंझांझणसी सिद्धाचल जी नी जात्र गया जदि बांणु लाख मालवा रौ मालवा रौ दांण इजारै थौ सो वरस १ री पैदास प्रभू जी ने चढाई । जद दूजां लोकां ईसकौ कर पातसाह सुं मालम करी जद मुंहता झांझणसी पेट में कटारी पैरी पेटी बांधनें पातसाह रै हजूर आगौ सर्व हकीगत कही आपका बोल बाला पीर के आगे कर आया तब पातसाह बहुत खुसी हुवा पेटी खोलो कटारी काढी प्राण-मुक्त हुवौ तिहां थी कटारीया गोत्र नख थयौ खरतर गच्छ श्रावक कटारीया गौत्र साखा मांडवगढ में छै ।
अथ डोसी गोत्र उत्पत्ति-प्रथम साख पमार कहीजे मांडवगढे धारानगरे श्री जिनदत्तसूरिजी प्रतिबोधत सं० ११४७ चैत्र सुदि ७ बुधे प्रथम सिद्धसेन पुत्र राजा भोज भोजराज पुत्र बंधराव पुत्र उदयादित्य पुत्र जगदेव पुत्र डारिष पुत्र पलरिषी धवल छराव गहिलडौ हंसराज वछराज कावौ माधौ गूगौ रिणिधवल रै केड रा सूरांणा डोसी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org