Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar
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शासनदेवी का चमत्कार बतलाया । तदनन्तर सिन्धु नदी का पानी वेग से बढता हुआ देखकर राजा ने बाढ़ से रक्षा करने की प्रार्थना की । सूरि महाराज ने धर्म का स्वरूप बता कर उसे समस्त भाटी राजपूतों के साथ जैनधर्म में दीक्षित किया गुरुदेव को राजाने :पानी आयरया है' कहा था। उन्होंने बाढ से रक्षा करके दस हजार भाटियों सहित प्रतिबोध पाये राजा का गोत्र आयरया प्रसिद्ध किया। राजा के सतरहवें पाट पर लूणा राजा हुआ जिसके वंशज लूणावत' कहलाये ।
' भनशाली जैसलमेर के पास लौद्रवपुर में भाटी राजा घर राज्य करता था जिसके युवराज का नाम सागर था। एक वार सागर की माता को ब्रह्म राक्षस लग गया। अनेक उपाय करने पर भी जब रानी को उसने नहीं छोडा तो सं० ११९६ में श्री जिनदत्तसूरिजी को बुलाकर रानी का कष्ट दूर करने के लिए निवेदन किया । गुरुदेव ने ब्रह्मराक्षस को उसे छोड देने की आज्ञा दी । ब्रह्मराक्षस ने कहाराजा मेरा पूर्वभव का शत्रु है, मैंने इसे अहिंसामय उपदेश दिया था पर इस दुष्ट देवीभक्त ने न मानकर मुझे कुमौत मारा। मैं मरकर व्यन्तर जाति में ब्रह्म-राक्षस हुआ
और इस का कुटुंब नाश कर वैर का बदला लेने आया हुँ । गुरुदेव ने उसे जैनधर्म का उपदेश देकर वैर भाव त्याग कराया वह रानी के शरीर से निकल कर पूर्वी दरवाजे को उत्तर की और करके चला गया। राजाने गुरु महाराज से भांडशाला में धर्म श्रवण कर बारह व्रत स्वीकार किये जिससे भांडशाली-भनशाली गोत्र स्थापना हुई।
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