Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar

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Page 50
________________ पर पांचवीं पीढ़ी में विस्तार होगा । वल्लभी नाश होने पर वे लोग पारकर के किसी गांव में जाकर कृपि कार्य करने लगे। पांचवीं पीढ़ी में रांका, बांका पुत्र हुए। एक बार नेमिचंद्रसूरिके सातवें पट्ट बिराजित श्री जिनवल्लभसूरि वहां पधारे। सूरिजीने कहा-महीने के भीतर तुम्हें सर्पभय होनेका योग है, अतः खेती के काम में मत जाना । पर वे परीक्षार्थ खेती की रक्षा के लिए प्रतिदिन जाते थे, एक दिन संध्या समय खेत से आते समय उनके पैर के नीचे सांप की पूंछ आ गई। जब सांप ने उनका पीछा किया तो वे तालाब पार होकर चण्डिका के मन्दिरमें जा द्वार बन्द कर सो गये। प्रातःकाल उन्होंने साँप को मन्दिर के निकट घूमते देखा तो गुरुवचनों को स्मरण कर देवी की स्तुति करने लगे। देवी ने कहा-मैंने सद्गुरु के उपदेश से मांसादि त्याग किया है, तुम भी कृषिकार्य छोड कर जिनवल्लभसूरि गुरुके सच्चे श्रावक बनों! तुम्हें वर्णसिद्धि प्राप्त होगी, अब सांप नहीं है, तुम लोग घर चले जाओ। सं० ११...५ में श्री जिनदत्तसूरिजी के पधारने पर रांका-बांका उनके व्याख्यान में जाने लगे। प्रतिबोध पाकर बाहर व्रतधारी श्रावक हुए, उनकी धनधान्य से वृद्धि होने लगी। एक योगी से रसकुम्पिका प्राप्त कर लोहे का प्रचुर स्वर्ण बना लिया। सिद्धपुर पत्तन के राजा सिद्धराज को छप्पन लाख दीनार भेंटकर बडे सेठ व छोटे सेठ की पदवी प्राप्त की। रांका बांका के वंशजों की काला, गोरा, बोंक सेठ, सेठिया, दकं छः शाखाएं हुई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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