Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar
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था जिसका पुत्र अर्दोग रोग पीडित था। अब राजा को सर्पदंश से जीवित किया तभी मंत्री ने अपने पुत्र के अ॰ग रोग मिटाने की प्रार्थना की थी। पूज्य श्री ने कहा कि रत्नपुरीय राठी माहेश्वरी जैन बने तो निरोग हो सकता है । मंत्री स्वीकार करके पुत्र को सूरिजी के पास लाया । उन्होंने योगिनियों को आज्ञा दी तो ज्ञात हुआ कि विजा नामक वणिक को जकात चोरी के अपराध में मंत्री ने जेल में डाल दिया। उसकी सात पुत्रियां क्रोध से जलकर चाण्डाल व्यन्तरी हुई। सूरिजी ने उन्हें बुलाया। उनके पिता को धन लौटाकर कारागृह से मुक्त कराया। मंत्रिपुत्र नीरोग हुआ । मंत्री ने जैनधर्म स्वीकार किया उसका वंश 'माल्हू' प्रसिद्ध हुआ ।
बुचा, पारख, डागा आदि गोत्र राजा का भंडारी राठी महेश्वरी भाभू था जिससे बुचा-पारख हुए । मुंधडा महेश्वरियों से 'डागा' गोत्र निकाला । भोरा, रीहड, छोडिया, सेलोत मादि पचास गोत्र उन्हीं राठियों में से हुए जो रत्नपुर निवासी थे।
सेठियादि ६ शाखाएं ___ सौराष्ट्र-वल्लभी में काकू और पाता नाम के गौड क्षत्रिय रहते थे । वे नगर के बाहर तैल-नमक बेचकर किसी नरह उदरपूर्ति करते थे। एक बार जैनाचार्य श्री नेमिचन्द्रसूरि वल्लभी पधारे तो उन्होंने सुखी होने का उपाय पूछा। उन्होंने जैनधर्म स्वीकार करने के लिये कहा। उनके स्वीकार करने पर सूरिजी ने कहा-वल्लभी नगरी से तुम्हारा भाग्योदय होगा । यहां से पारकर देश जाने
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