Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar
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की । सगर के बोहित्थ गंगदत्त और जयसिंह नामक तीन पुत्र हुए । बोहित्थ राजा के बहुरंगदेवी रानी और श्रीकर्ण, जेसा, जय मल्ल, नाल्हा, भीमसिंह, पद्मसिंह, सोमा और पुण्य पाल आठ पुत्र ओर पदमा नामक एक पुत्री थी। सं० ११९७ में श्री जिनदत्तसूरिजी देवलवाडा पधारे । प्रतापी गुरुदेव का आगमन सुन राजा वन्दनार्थ गया । उनकी पीयूष-वाणी से प्रतिबोध पाकर श्रीकर्ण के सिवा सभी पुत्रों के साथ राजा जैन हो गया। गुरु महाराज ने उनका 'बोहिथरा' गोत्र स्थापित किया। चितौड-पति ने युद्ध में सहायतार्थ बुलाया । अपनी मृत्यु निकट ज्ञात कर राजा ने श्रीकर्ण को राज्य व इतर पुत्रों को धनादि दे दिया और स्वयं चतुर्विध आहार त्याग कर पंच परमेष्ठी के ध्यान पूर्वक रणक्षेत्र में मर के 'हनुमंत वीर' गामक व्यन्तर देव हुआ ।
सीसोदिया, दूगड़ सूगड़, खेताणी, कोठारी
संवत् १२१७ में श्री जिनचन्द्रसूरि विचरते हुए मेवाड़ के आघाट गांव में पधारे। वहां के खीची राजा सूरदेव के पुत्र दूगड़ सुगड़ राज्य करते थे। नगर के बाहर नाहरसिंह वीर को पुराने मंदिर को लोगों ने गिरा दिया। नाहरसिंह वीर गांववासियों के विविध प्रकार से कष्ट देने लगा। मंत्र-तंत्रादि नाना उपाय करने पर भी शांति नहीं होती थी। गुरु महाराज को वहां पधारे सुन कर दूगड़ सूगड ने उनके पास जाकर अपनी दुख गाथा सुनाई। गुरुदेव ने उन्हें धर्मोपदेश देकर जैनधर्म में दीक्षित किया और उपसर्गहर स्तोत्र का स्मरण देकर उपद्रव मिटाया। उस समय सीसोदिया वैरीसाल भी श्रावक हुआ जिसके वंसज सीसोदिया
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