Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar

View full book text
Previous | Next

Page 43
________________ कूकड़ चोपडा, गणधर चोपडा, गाँधी, सांड एक वार जिनदत्तसूरि मण्डोवर पधारे । वहाँ के पडिहार राजा नानुदे के चार पुत्र थे । एक दिन रात्रि में भोजन करते समय बडे राजकुमार के सांप का विष आ गया उसका सर्वाग विष व्याप्त हो गया । राजा के मंत्रतंत्र औषधि आदि नाना उपचार निष्फल होने पर कायस्थ मंत्री गुणधर ने जिनवल्लभ सूरि का नाम लिया । राजा ने कहा मैं उन महापुरुष से उपकृत हुँ मेरे सन्तान नहीं थी, मैंने गुरु कृपा से सन्तति पायी । मैंने प्रथम पुत्र को गुरु चरणों में समर्पण करने का संकल्प किया था । मन्त्री ने कहा आपने क्या प्रतिज्ञा पूर्ण की ? राजा ने कहा नहीं की, अब कोई उपाय बताओ ! मन्त्री ने कहा-वे तो स्वर्गवासी हो गए, पर उनके शिष्य जिनदत्तसूरि के पास जाकर क्षमा याचना करने पर वे इसे जीवतदान दे सकते हैं। राजा ने गुरुमहाराज के पास ले जाकर पुत्र को दिखाया । उन्होंने कुकड़ी गाय के माखनघृत को मन्त्रित कर राजकुमार के शरीरमें मालिश करवाया जिससे वह तत्काल निर्विष हो गया। राजा बहुत से कुटुम्बों के साथ जैन हो गया । कुकड़ी गाय का नवनीत चोपड़ने से राजा का गोत्र कुकड़ चोपड़ा हुआ मन्त्री गुणधर ने नवनीत चोपड़ा था, इस लिए उनका वंश 'गुणधर चोपड़ा' स्थापित किया। आगे चलकर गांधी गोत्र व्यवसाय से हुआ । राजपुत्र सांडा से सांड हुए । चीपड़ पुत्र से चीपडा हुए इसी प्रकार कोठारी, धूपिया, बुबकिया, बडेर जोगिया, हाकिम, दोषी आदि गोत्र उन्हीं में से प्रसिद्ध हुए । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74