Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar
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बाफणा नाहटादि शाखा मालव देश के धार में क्षत्रिय पंवार पृथ्वीधर राजा के सोलहवें पट्ट पर जीवन और सच्चू राजकुमार हुए । वे किसी कारण धार छोड़कर मारवाड़ आये । जालोर के राजा के साथ युद्ध हुआ कनौज के जयचन्द (१) की सहायता मिली पर किसी की भी हार जीत नहीं होने से गुजरात में श्री जिनवल्लभसूरिजी को विनति की गई। उन्होंने जीवन-सच्चू के जैन होने पर उपाय बताना स्वीकार किया । बहुफण पार्श्वनाथ का विधि पूर्वक शत्रुञ्जयी मन्त्र भेजा जिसके प्रभावसे शत्रु सेना छिन्न-भिन्न हो गई कन्नौज पतिने उन्हें सम्मानित कर शक्ति-प्राप्त का कारण ज्ञात किया । दोनों भ्राता गुरु दर्शन के लिए चले ।
उनके स्वर्गवासी होने एवं प्रभावशाली श्री जिनदत्तसूरिजी की कीर्ति-गाथा ज्ञात कर उनके चरणों में कृतज्ञता ज्ञापन की । सूरिजी ने उन्हें प्रतिबोध देकर बहुफणा-बाफणा गौत्र प्रसिद्ध किया । सच्चु, जीवन के ३८ पुत्र हुए जिनमें साँवत वीर शिरोमणि था। उनके पुत्र जयपाल पृथ्वीराज के सेनापति हुए, छः बार काबुल के बादशाह पर विजय पायी । पृथ्वीराज ने संग्राम में नहीं हटने से "नाहटा" विरुद दिया रायजादा, भूआता, घोडबाड, मरोठीया, हुंडिया, जांगडा, थुल्ल, सोमलिया, सोमलिया, बांहतिया, वसाहा, मीढड़िया, धतूरिया, पटवा, बाघमार भाभू नाहऊसरा, धांवल, नानगाणी. मकेलवाल, साहला, दसोरा, कलरोही, खोखा सोनी, तोसालिया, भुंगरवाल, कोटेचा. संभूआता, कुचेरिया, जोटा, महाजनीया, दुगरेचा, मगदिया, कुबेरियां आदि बाफणा वंशकी कितनी ही शाखा प्रशाखाएँ आगे चल कर प्रसिद्ध हुई।
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