Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar

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Page 32
________________ २१ आसीस षट के व्रत एम आखे तू तपे सलियर सुरज परवार पूते जेम पसरो भल बजो घर जस बजां वेदुआ तरबर वंस रव ज्युँ प्रभवति बाघो प्रधला || दी० ॥७॥ ॥ कलश ॥ कला चढती क्रीत धीग दीपे पण धारी । साच वाख सूत्रवी साच सुं सबद धर सारी | ऋषभदास विमलेस आल नह मुखा उचारे । सुत लीलो मीरदार* मेहेल व्रण ओट उवारे । मांगणा मेह मेहरांण मन वाच साच विरदांव है | देवीदास सुजस दुनियां देखे कवि व्याह इसु सबद कहै ॥८॥ ॥ इति लूणीया गोत्र उत्पत्ति सम्पूर्णम् ॥ (अभय जैन ग्रन्थालय प्रति नं० ७७६७) (५) संखवाल गोत्र इतिवृत्त अथ संखवाल गोत्र की उतपत चहुआग वंस, देवड़ा गोत्र, मूलवासी नाइलरा, तुरकाणी रे भैहुती जालोर आवी रहा । जालोर तुरक आव्या तिवाणां कांनड़दे देवगत थयौ । कानड़दे पुत्र लखमसीने तुरकां काढीयौ तिवाणां लखमसी संखवाली गाम मांहे आवी रह्या । तिहांश्रीरत्नप्रभुसूर आवी प्रतबोधी श्रावक कीधो लखमसी श्रावक थयो सम्वत ७१३ वर्षे माहा सुदि ५ गुरवारे संखवालीगांम हुँती संखवाल गोत्र थयो । देवी ३ थई । संखवाली १ साचोली २ अम्बका ३ अनै जालोर रो खेत्रपाल । इम ४ गोत्रीया थआ तणरी *सीरदार वल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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