Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar
View full book text
________________
समक्ष यदा कदा शिवादि देवों की हंसी उड़ाया करता था। श्रीमल्ल उत्तर देने में असमर्थ होने से मन मसोस कर रह जाता था। एक बार (संवेगरंगशाला कर्ता) श्री जिनचन्द्रसूरिजी के दिल्ली पधारने पर उनके उपदेशों के प्रभाव से पेढ पमार ने मांसभक्षण का त्याग कर दिया और देव गुरु धर्म का स्वरूप समझ कर श्रीमल्ल भी श्रावक हो गया। गुरुमहाराज ने श्री श्रीमाल गोत्र की स्थापना की।
महतियाण श्रीमल के घर में धनपाल को निवास कराया, वह भी श्रावक हो गया। बादशाह ने उसे महत्त्व दिया, गुरु महाराज ने महत्तियाण गोत्र स्थापना की।
पगारिया मेडत्वाल खेतसी अभयदेवमूरि-संवत् ११११ में श्री अभयदेव सूरि महाराज भिन्नमाल पधारे। धनाढ्य ब्राह्मण जाति शंकरदास गुरुमहाराज की देशना से प्रतिवोध पाये। उनके वंशजों की पगारिया, मेडतवाई और खेतसी नामक तीन शाखाएं चली।
घाडीवाह, कोठारी, टांटिया श्री जिनवल्लभसूरि-श्री जिनवल्लभसूरिजी विचरण करते हुए एक वार उजापुर पधारे। वहां का डीडा नामक खीची राजपूत धाड़ पडता था। सिद्धराज जयसिंह ने उसे पकड़ने के लिए योद्धा भेजे उसने राजा का खजाना ही लूट लिया। राजा ने क्रुद्ध होकर बीस हजार सेना भेजी। डीडाजी पच्चीस खीचियों के साथ श्री जिनवल्लभसूरिजी के शरण में गए। गुरु महाराज ने उसके मस्तक पर वासक्षेप डाला जिसके प्रभाव से वह विजयी हुआ और उनसे प्रति
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org