Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar

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Page 15
________________ लिखित प्रतियों में प्राप्त कई गोत्रादि के विवरण प्रकाशित किये जा रहे हैं । इनमें कुछ गद्य में और कुछ पद्य में है । दो तीन पत्रों में खरतर गच्छने ओसवाल - श्रीमान गोत्रों की सूची दी गई है । खोज करने पर असी प्रचुर सामग्री ज्ञानभन्डारों आदि में और भी प्राप्त हो सकती हैं । श्री चन्द्रराज भंडारी आदि के लिखित ओसवाल जाति के इतिहास में भी इस जाति के कई गोत्रों का विवरण प्रकाशित हुआ है। मुनि ज्ञानसुन्दर जी ने उपकेशगच्छ के प्रतिबोधित जाति-गोत्रों का वर्णन अपने पार्श्वनाथ परम्परा के इतिहास में दिया है अंचल गच्छ के गोत्रा दिका विवरण पं० हीरालाल हंसराज के जैन गोत्र संग्रह में तथा 'श्रीमाल वाणियो नो जाति भेद' पुस्तकमें प्रकाशित हैं।" जैन ग्रन्थों की प्रशस्तियों और शिलालेख, प्रतिमा लेख आदि से साधारण तया किस जाति गोत्र से किस गच्छों का संबन्ध रहा हैं इस की प्रामाणिक जानकारी मिलती हैं । यद्यपि कई कारणों से कई जाति और गोत्रोंने गच्छ परिवर्त्तन भी कर लिया हैं पर कई जाति गोत्र वाले आज भी अपने प्रतिबोधक आचार्य की परम्परा को पालन कर रहे हैं। अपने पूर्वजों पर किए हुए महान् उपकार को सदा स्मरण रखना आवश्यक हैं । खरतर गच्छ कालान्तर में कई शाखाओं में विभक्त हो गया, उनमें से कतिपय शाखाएं तो लुप्त हो चुकी हैं। कई शाखाओं के दफ्तर आदि अब प्राप्त नहीं हैं। इस लिए आगे दी जाने वाली खरतर प्रतिबोधित गोत्र सूची को पूर्ण नहीं कहा जा सकतां । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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