Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar
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और भी कुछ असंगतियाँ हो सकती है क्योंकि उपर्युक्त विवरण, घटना से काफी बाद के लिखे हुए मिलते है अतः सुनी-सुनाई हुई मौखिक बातों में अंतर पडना बड़ी बात नहीं है। हमने तो जो और जैसा भी प्राचीन प्रतियों व लब्धिमुनिजी के पट्टावली में देखा, उसी को यहाँ दे दिया है । प्राचीन सामग्री मिलने पर अधिक प्रामाणिक तथ्य प्राप्त हो सकते हैं ।
जैन जातियों और गोत्रों के सबन्ध में जो कई ग्रन्थ पहले प्रकाशित हुए थे, वे आज प्राप्त नहीं हैं । और जो थोडी सी सामग्री प्राप्त है वह भी सबके लिए सुलभ नहीं है अतः अनेक व्यक्ति अपने गोत्र की स्थापना कब और किसने की ? यह जानना चाहते हुए भी सफल-प्रयत्न नहीं हो पाते खरतर गच्छ के महान् आचार्यों ने जिन २ गोत्रों की स्थापना की, तत्संबन्धी जो भी सामग्री और जानकारी एकत्र कर पाये, वह जिज्ञासुओं एवं जातीय इतिहास प्रेमियों के सम्मुख प्रस्तुत कर रहे हैं। ___ मध्यकाल में अपने गच्छ की प्रतिष्ठा बढ़ाने और अनु. याइयों को बनाये रहने व बढाने के लिए जातीय इतिहास सम्बन्धी कुछ कल्पना-प्रसूत और अतिशयोक्ति पूर्ण बातें प्रचारित की जाती रही हैं, उन सब में से तथ्य को ग्रहण करना बहुत ही कठिन कार्य हैं । कुलगुरु, बही-भाटों आदिके पास बहुत सी वंशावलियाँ और बडे बडे पोथे मिलते हैं एवं हमने भी जैसी बहुत कुछ सामग्री एकत्र की है। स्वर्गीय मुनि ज्ञानसुन्दरंजी ने उपकेशगच्छ की परम्परा में प्राप्त जैसी कुछ सामग्रीको अपने महाजन वंश के इतिहास, पार्श्वनाथ परम्परा का इतिहास आदि ग्रन्थों में प्रकाशित
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