Book Title: Jainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Jinharisagarsuri Gyan Bhandar

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Page 9
________________ के पृ० ३६ से ४६ द्रष्टव्य है। छाजहड़ का जो विवरण छपा है उसके संबन्ध में हमारे ‘दादा श्रीजिनकुशलसूरि' ग्रन्थका प्रथम परिशिष्ट द्रष्टव्य है । उसके अन्त में उद्धरण के खरतर गच्छीय होने का संवत् १२४५ दिया है जिसकी गाथा इस प्रकार है : "वारसए पणयाले, विक्रम संवच्छराउ वइक्कते । उद्धरण केड़ पमुहा, छाजहड़ा खरतरा जाया ॥१॥" छाजेड़ गोत्रके सम्बन्ध में बेगड़ गच्छीय जिन समुद्रसूरिजीने अपने ऐ काव्यमें जो विवरण दिया है उसके पद्य आगे परिशिष्ट नम्बर ३ में दिए जा रहे हैं। महत्तियाण जातिके १५ गोत्रों का विवरण एक गुटके में पीछे से मिला, उसकी भी नकल आगे परिशिष्ट नं. १ में दी जा रही है। हमारे संग्रह में जो एक पत्र खरतर गच्छ के गोत्रों सम्बन्धी पीछे से और मिला है, उसकी नकल भी परिशिष्ट नं. २ में दी जा रही है। आगे दिये जानेवाले गोत्रों सम्बन्धी विवरण में दोतीन जगह संवत् अधूरे और गलत छपे हैं। जैसे - पृ० ३३ में डोसी गोत्र के विवरण में सं० ११४७ छपा है वह सं० ११७४ होना चाहिए । पृ० ४१ में ११ छपा है आगे के अंक छूट गए हैं, वे ११६९ से ९९ के बीच के होने चाहिए । पृ० ४३ में सं० ११-५ छपा है वहाँ बीच का अंक त्रुटित है, वे ११७५-८५ या ६५ में से कोई भी हो सकता है। पृ० ४४ में बोरड गोत्र का संवत् १११५ छपा हैं पर जिनदत्तसूरिजीके समय को देखते हुए वह भी ११७५-८५ या ६५ हो सकता है । ऐतिहासिक दृष्टि से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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