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उदक चदन तदुल पुष्पर्क, चस्सुदीप मुधूपफलायक ।
प्रचल मगल गान रवाकुले, जिनगृहे जिन नाम मह यजे ॥ ॐ ह्री श्री भगजिनेन्द्र महननामम्यो अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा।
स्वस्ति-मंगलम श्री वपमोः स्वस्ति, म्वस्ति श्री अजित । श्री सभव स्वस्ति, स्वस्ति
श्री अभिनन्दन । श्री सुमति स्वस्ति, स्वस्ति श्री पदम प्रभ । श्री सुपाश्व स्वस्ति, स्वस्ति
श्री चन्द्रप्रभ । श्री पुष्पदन्न स्वरित म्वस्ति श्री गीतल । श्री श्रेयान स्वस्ति, स्वस्ति
श्री वासुपूज्य । श्री विमल स्वस्ति, ग्वस्ति श्री अनत । श्री धर्म स्वस्ति, स्वस्ति श्री शान्ति । श्रीकुन्युः स्वस्ति, स्वस्ति श्री मरनाथ । श्री मल्लि स्वस्ति, स्वन्ति
श्री मुनिसुव्रत । श्री नमि स्वस्ति, स्वस्ति श्री नेमिनाथ । श्री पार्श्व स्वस्ति, स्वस्ति
श्री वर्धमान । विनय पाठ हे नाथ । मैं मिथ्यात्व वश, ससार मे फिरता रहा। इक बोधि लाभ विना अनन्तो, व्यर्थ भव घरता रहा ।।१।। देव पूजा ना करी, नहिं पात्रदान कभी दिया। जिन वैन भी न सुने कभी, चारित्र भी नही रख सका ।।२।। है निर्विकल्प स्वभाव सिद्ध, अरु एक केवल मातमा । भूलकर उसको सदा, मैं टक्करें खाता रहा ॥३॥ अस्थि मज्जा चाम से, निर्मित अथिर ससार मे। रमता रहा भ्रमता रहा, नहिं शरण कोई पा सका ॥४॥ आज मेरा पुण्य जागा, आपके दर्शन हुए। पाई शरण, आलोक सा सहसा हृदय पर छा गया ।।५।।