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मारि नाग पहाडी शेर को
पर ने बागे आनि बहाना है, बाटा रहा नही कोई ठावा है । ही भयभीत गधे भागे भागा कुम्हार निज जान बचाय छूटि गया पर वन से वह शेर मिला मेरो मे जाय ॥१२॥ इसी भांति यह नाम निज पद भूलि मूसंता के चयन में, बँधा अनादि काल सेना भ्रमत चतुरगति जीवन में । जो निज चैन सुन सतगुरु के तो परिचान निज शुद्ध सप पारि परिवर पोट छुटे विधि बन्धन से ही शिव भूप ॥ १३॥ |
(२९) भूल भुलैयों का संसार
( पं० मक्खनलाल )
मूल भुलैयो वाले उपवन में चौतरफा घेरा था, - सघन वृक्ष वल्ली मडप से रहता सदा अंधेरा था । कही तिसटी टेडी मेही कही गोल चीलूंटी है, पता न पाता गली हजागे कहाँ मिली कहाँ छूटी है ॥ १ ॥ होश्यार विद्वान पुरुष भी चक्कर में पड़ जाता है, साधारण अनभिज्ञ पुरुष को रस्ता ही नही पाता है । उसमे एक पुरुष अन्धा सिर का गजा धँस जाता है, विपदा का मारा शत्र भूल भुलैयो में फँस जाता है ||२||
कैसे निकलूं, ओर चलें ।
हाय-हाय करता फिरता अब बाहर में बहुत काल हो गया मुझे टेढा तिरछा किम बोला एक दयालु गगन से विद्याधर में आता हू, सूरदास घबराओ मत में तुमको यत्न बताता हू ॥३॥