Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 174
________________ प्रारम्भ से पहले वैशुद्धियों को शुद्ध कीजिय पृष्ठ संख्याय पंक्ति २१ २४ ३२ ३५ ३६ AAWA ३७ ३८ ३६ ४० ५० ५३ ५५ ५६ ६० ६३ ७२ ७७ ७६ 420424 ८२ ८५ २० २४ १८ २२ २१ १६ ६ १६ १४ ० १७ ८ १८ ५ २१ १० २३ १४ २० २६ ६ ३ अशुद्धि w m त्रयवध वन चत्य वराग्य धन शचि हन बन दशधम त आ प्रम जौ मोक्षाथ केकल ससर मे कम ढले पोछे चल ओर ८८ ६५ ६७ ६८ ६८ भारतीय श्रुति-दर्शन केन्द्र शृतकरूप मुनिवरो और शुद्ध aafaa वैन चैत्य वैराग्य घन शुचि हन बैन दशधर्म तो आज प्रेम जो मोक्षार्थ केवल ससार मै कर्म ठुले पीछे चलूं और मृतकरूप मुनिवर ओर

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