________________
( १७२ )
नहीं खरच धन होय, नही काहू से लरना; नहीं दीनता होय, नहि घर का परिहरना । समकित सहज स्वभाव, आपका अनुभव करना, या विन जप तप वृथा, कष्ट के माही परना ॥६॥ अर्थ :- सम्यक्त्व वह तो आत्मा का सहज स्वभाव है, उसमे न तो कुछ धन खर्च होता है और न ही किसी से लडना पडता है। न तो किसी के पास दीनता करनी पडती है और न ही घरवार छोडना पडता है । अपना एक रूप त्रिकाली सहज स्वभाव - ऐसे आत्मा का अनुभव करना वही सम्यक्त्व है । सम्यक्त्व के विना जप-तप आदि व्यवहार क्रियारूप आचरण निरर्थक है, कष्ट मे पडना है ॥ ६ ॥ कोटि बात की बात, अरे "बुधजन" उर धरना, मन वच तन शुचि होय, गहो जिनमत का शरना । ठारा सौ पच्चास अधिक नव सम्वत जानों, तीज शुक्ल वैशाख, ढाल षष्टम उपजानो ॥१०॥ अर्थ :- ग्रन्थ की पूर्णता करते हुए प० बुधजन अन्तिम पद मे कहते हैं कि अरे भव्य आत्माओ बुधजनो | करोड़ो बात की सार रूप यह बात तुम अन्तरग मे धारण करो, मन वचन काया की पवित्रता पूर्वक जिन धर्म की शरण ग्रहण करो । ढाल' - इस नाम की शुभ उपमा वाला यह छह पदो की रचना 'छहढाला' सम्वत १८५६ की बैशाख शुदि तीज को समाप्त हुई ||१०||
छठवीं ढाल का सारांश
(१) जिस चारित्र के होने से समस्त पर पदार्थों से वृत्ति हट जाती है, वर्णादि तथा रागादि से चैतन्यभाव को पृथक कर लिया जाता है, अपने आत्मा में, आत्मा के लिये, आत्मा द्वारा, अपने आत्मा का ही अनुभव होने लगता है, वहीं नय प्रमाण, निक्षेप, गुण-गुणी,