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प्रारम्भ से पहले वैशुद्धियों को शुद्ध कीजिय
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१४
२०
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अशुद्धि
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त्रयवध
वन
चत्य
वराग्य
धन
शचि
हन
बन
दशधम
त
आ
प्रम
जौ
मोक्षाथ
केकल
ससर
मे
कम
ढले
पोछे
चल
ओर
८८
६५
६७
६८
६८ भारतीय श्रुति-दर्शन केन्द्र
शृतकरूप
मुनिवरो और
शुद्ध aafaa
वैन
चैत्य
वैराग्य
घन
शुचि
हन
बैन
दशधर्म
तो
आज
प्रेम
जो
मोक्षार्थ
केवल
ससार
मै
कर्म
ठुले
पीछे
चलूं
और
मृतकरूप
मुनिवर
ओर