Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 140
________________ ( १४० ) व्याथायें मिलें तो उन्हे तुम दुलारो प्रगति प्रेम मे मिले तो पुकारो। दुखो की सदा उम्र छोटी रही है, सदा श्रम सुखों को ही वीती रही है ॥ सदा पतझरो में बहारो को टेरा, जभी जाग जाओ तभी है सवेरा ॥ ३ ॥ गुरुदेव के द्वारा नया दिन मिला है, जो निविय विखरती वो लूटो निकला, तुम जौहरी वन करके उजाला ॥ अनेक ग्रन्थ मधन से हीरा जरा भूल की तो नरक में वसेरा, जभी जाग जाओ तभी है सवेरा ||४|| न समझो मिन कितना अधेरा, अभी जाग जाओ अभी है सवेरा । ४७. ( राजमल पवैया ) जब तक मिथ्यात्व हृदय मे है, ससार न पल भर कम होगा ! जब तक परद्रव्यो से प्रतीति भवभार न तिल भर कम होगा ॥ टेक ॥ जब तक शुभ अशुभ को हित समझा, तब तक सवर का भान नही । निर्जरा कर्म ही कैसे हो, जब तक स्वभाव का भान नही ||१|| जब तक कर्मों का नाश नहीं, तब तक निर्वाण नही होगा । जब तक निर्वाण नही होगा, भव दुख से त्राण नही होगा ||२| जब तक तत्वो का ज्ञान नही, तब तक समकित कैसे होगा । जब तक सम्यक्त्व नही होगा, तब तक निज हित कैसे होगा ||३|| इसलिये मुख्य पुरुषार्थ प्रथम, सम्यक्त्व प्राप्त करना होगा । निज आत्म तत्व के आश्रय से, वसु कर्मजाल हरना होगा ॥४॥ दिन समकित व्रत पूजन अर्चन, जप तप सब तेरे निष्फल है । ससार बघ के हैं प्रतीक, भवसागर के ही दलदल हैं ||५|| ( ४८ राजमल पवैया ) गाडी खडी रे खड़ी रे तैयार, चलो रे भाई मोक्षपुरी ॥ टेक ॥ सम्यग्दर्शन टिकट कटाओ, सम्यग्ज्ञान सवारो । सम्यक् चारित्र की महिमा से, भाटो कर्म निवारो ॥ १॥ हमेशा । कर दो

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