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(६१) चिदानन्द शुद्धात्म द्रव्य की शुद्ध धूप निज अन्तरमय । पर विभाव का ताप मिटाने मे लगता है एक समय ॥परम०॥ ___ॐ ही अनन्त शक्ति सम्पन्न शुद्ध आत्मदेवाय धूपम् नि० चिदानन्द शुद्धात्म द्रव्य का परमानन्दी फल शिवमय । दृष्टि बदल जाय तो सृष्टि बदलने मे भी एक समय ।।परम०॥
ॐ ह्री अनन्त शक्ति सम्पन्न शुद्ध आत्मदेवाय फलम् नि० चिदानन्द शुद्धात्म द्रव्य का ज्ञान स्वभावी अर्घ अभय । राग द्वेष की व्यथा मिटाने मे लगता है एक समय ।। परम ब्रह्म भगवान आत्मा ध्रुव अनन्त गुण ज्ञानमयी। नित्य निरञ्जन चिन्मय चेतन शुद्ध बुद्ध निज ध्यानमयी ।।
ॐ ही अनन्त शक्ति सम्पन्न शुद्ध आत्मदेवाय अर्घम् नि०
जयमाला आत्मदेव ही देव हैं महादेव बलवान । निज अन्तर मे जो नसा शाश्वत सुख की खान ।। मैं आत्मदेव चैतन्य पुज, ध्र व दर्श भूत अतीन्द्रिय हैं। मैं तो ज्ञानात्मक निरालम्ब, परमात्म स्वरूप अतीन्द्रिय हूँ। मैं तो नारफ अथवा मनुष्य तिर्यञ्च देव पर्याय नहीं। में उनका करता कारयिता फर्ता का अनुमन्ता न कहीं। मैं नहीं मार्गणा गुणस्थान अथवा मै जीवस्थान नहीं । मैं उनका कर्ता कारयिता कर्ता का अनुमन्ता न कहीं ॥ में एक अपूर्व महा पदार्थ मैं पर द्रव्यो में अक्रिय हैं। मैं आत्मदेव चैतन्य पुञ्ज घ्र व दर्शन भूत अतीन्द्रिय हूँ ॥ मैं बाल नहीं मैं तरुण नहीं मैं रोगी अथवा वृद्ध नहीं। मैं उनका कर्ता फारयिता कर्ता का अनुमन्ता न कहीं।