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(२८) जैसे शेर अपनी शक्ति को गधा बन गया उसी प्रकार अज्ञानी अपनी
भूलकर
मूर्खता से परिभ्रमण करता है
( पं० मक्खनलाल )
सावन भादो की अंधियारी आती आती आती है, सुनिकरि जन्तु डरे वन के भय से छाती थरथराती है । आपस मे सब मिलिकरि बोले यार अन्धेरी आवैगी, शीघ्र उपाय करौ छिपने का नातर वो खा जावैगी ॥१॥
सब से पहले कहरि वोला में खो मे छिप जाऊँगा, भागि जायगी जब अन्धेरी तव बाहर आ जाऊँगा । सुनकर यह प्रस्ताव शेर का बैठि गया सबके दिलमे, निर्भय होकर जाय छिपे सब ही अपने अपने बिल मे ||२|| इतने में घनघोर घटा उठि कारी कारी आती है, कडकडाट कर गजि गर्जि रिम झिम पानी बरसाती है । उसी समय उस ही जगल मे कुम्भकार इक आता है, निर्भय होकर के गधहो पर बोझ लादकर लाता है ॥३॥ उनमे से इक चचल गधहा बोझ डारि करिकै भागा, उसे पकड़ने अन्धकार मे कुम्भकार पीछे लागा । किन्तु गधा ऐसा भागा जो हाथ नही इसके आया, ढूंडत ढूंडत कुम्भकार अतिक्रोषित होकर शुभलाया ॥४॥ कहाँ गया कम्बख्त खूब हैरान किया तूने मुझको, मारि मारि ढडो से मैं भी मजा चखा दूंगा तुझको ।