Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ ( ३८ ) शुकलपौष दशै सुखराश है । परम- केवल ज्ञान प्रकाश है ॥ भवसमुद्रउधारन देवकी । हम करें नित मंगल सेवकी ॥ ४ ॥ ॐ ह्री परशुक्लादशम्यां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीशांतिनायायध्यं ० । असित चोदशि जेठ हन अरी। गिरि समेदथकी शिव-तिय-वरी । सकलइन्द्र जजै तित आयकै । हम जजै इत मस्तक नायक ||५|| ॐ ह्री ज्येष्ठकृष्णा चतुर्दश्यां मोक्षमगलप्राप्ताय श्रीशा तिनाथायार्घ्य ० । [ जयमाला] ठद ग्योता, चद्रवत्म तथा चद्रवत्स, वर्ण ११ लाटानुप्रास । शाति शातिगुनमडिते सदा । जाहि ध्यावत सु पडिते सदा ॥ मैं तिन्हे भक्तिडिते सदा । पूजिहो कलुपहडिते सदा ॥१॥ मोक्षहेत तुम ही दयाल हो । हे जिनेश गुनरत्नमाल हो । मैं अव सुगुनदाम ही धरो । व्यावते तुरित मुक्ति ती वरो ॥ २ ॥ छन्द पद्धरि (१६ मात्रा) जय शांतिनाथ चिद्र पराज । भवसागर मे अद्भुत जहाज ॥ तुम तजि सरवारधसिद्धथान । सरवारथजुत गजपुर महान | १ | तित जनम लियौ आनन्द धार । हरि ततछिन आयो राजद्वार | इन्द्रानी जाय प्रसूतथान । तुमको करमे लै हरष मान ॥२॥ हरि गोद देय सो मोदधार । सिर चमर अमर ढारत अपार ॥ गिरिराज जाय तित शिला पाड । तापै थाप्यो अभिषेक माड | ३ | तित पचमउदधि तनो सु वार । सुरकर करकरि ल्याये उदार । तब इन्द्र सहसकर करि अनद तुम सिर धारा ढारयौ सुनद अघ घ घ घुनि होत घोर भभभभभभ धधधध कलशशोर दृमदृमदृमदम बाजत मृदग । झन नननननननन नू पुरंग |५| तननननननननन तनन तान । घननननन घटा करत ध्वनि || ता थेईथे इथे इथे इथेइ सुचाल । जुत नाचत नावत तुमहिं भाल | ६ | चटचटचट अटपट नटत नाट । झटभटझट हट नट शट विराट । इमि नाचत राचत भगत रग । सुर लेत जहा आनन्द सग |७| इत्यादि अतुलमगल सुठाट । तित बन्यो जहा सुरगिरि विराट । पुनि करिनियोग पितुसदन आया। हरि सौंप्यो तुम तितवृद्धथाय 15 | । ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175