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शुकलपौष दशै सुखराश है । परम- केवल ज्ञान प्रकाश है ॥ भवसमुद्रउधारन देवकी । हम करें नित मंगल सेवकी ॥ ४ ॥ ॐ ह्री परशुक्लादशम्यां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीशांतिनायायध्यं ० । असित चोदशि जेठ हन अरी। गिरि समेदथकी शिव-तिय-वरी । सकलइन्द्र जजै तित आयकै । हम जजै इत मस्तक नायक ||५|| ॐ ह्री ज्येष्ठकृष्णा चतुर्दश्यां मोक्षमगलप्राप्ताय श्रीशा तिनाथायार्घ्य ० । [ जयमाला] ठद ग्योता, चद्रवत्म तथा चद्रवत्स, वर्ण ११ लाटानुप्रास । शाति शातिगुनमडिते सदा । जाहि ध्यावत सु पडिते सदा ॥ मैं तिन्हे भक्तिडिते सदा । पूजिहो कलुपहडिते सदा ॥१॥ मोक्षहेत तुम ही दयाल हो । हे जिनेश गुनरत्नमाल हो । मैं अव सुगुनदाम ही धरो । व्यावते तुरित मुक्ति ती वरो ॥ २ ॥ छन्द पद्धरि (१६ मात्रा)
जय शांतिनाथ चिद्र पराज । भवसागर मे अद्भुत जहाज ॥ तुम तजि सरवारधसिद्धथान । सरवारथजुत गजपुर महान | १ | तित जनम लियौ आनन्द धार । हरि ततछिन आयो राजद्वार | इन्द्रानी जाय प्रसूतथान । तुमको करमे लै हरष मान ॥२॥ हरि गोद देय सो मोदधार । सिर चमर अमर ढारत अपार ॥ गिरिराज जाय तित शिला पाड । तापै थाप्यो अभिषेक माड | ३ | तित पचमउदधि तनो सु वार । सुरकर करकरि ल्याये उदार । तब इन्द्र सहसकर करि अनद तुम सिर धारा ढारयौ सुनद अघ घ घ घुनि होत घोर भभभभभभ धधधध कलशशोर दृमदृमदृमदम बाजत मृदग । झन नननननननन नू पुरंग |५| तननननननननन तनन तान । घननननन घटा करत ध्वनि || ता थेईथे इथे इथे इथेइ सुचाल । जुत नाचत नावत तुमहिं भाल | ६ | चटचटचट अटपट नटत नाट । झटभटझट हट नट शट विराट । इमि नाचत राचत भगत रग । सुर लेत जहा आनन्द सग |७| इत्यादि अतुलमगल सुठाट । तित बन्यो जहा सुरगिरि विराट । पुनि करिनियोग पितुसदन आया। हरि सौंप्यो तुम तितवृद्धथाय 15 |
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