________________
( ३७ ) मदार सरोज कदली जोज, पुज भरोज, मलयभर । भरि कचनथारी, तुढिग धारी, मदनविदारी धीरधर श्री।।४। ॐ ह्री श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय कामवाणविध्वसनाय पुष्प नि० स्वाहा । पकवान नवीने, पावन कीने, षटरसभीने सुखदाई। मनमोदनहारे, क्षुधा विदारे, आगै धारै, गुनगाई ॥श्री।। ।५। ॐ ह्री श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि० स्वाहा । तुम ज्ञानप्रकाशे, भ्रमतमनाशे, शेयविकाशे सुखराशे। दीपक उजियारा, यातै धारा, मोह निवारा, निजभासे ।श्री।।६। ॐ ह्री श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय मोहाधकारविनाशनाय दीप नि० स्वाहा चन्दन करपूर करिवर चूर, पावक भूर, माहिजुर । तसु धूम उडावे, नाचत गावै, अलि गुजावै, मधुरसुर ।श्री।।७। ॐ ह्री श्री शान्तिनाथ जिनेन्द्राय गष्टकर्मदहनाय धूप निर्व० स्वाहा । बादाम खजूर, दाडिम पूर, निबुक भूर, लै आयो। तासो पद जज्जो, शिवफल सज्जो, निजरसरज्जो, उमगायो।श्री। ॐ ह्री श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फल नि० स्वाहा । वसु द्रव्य नवारी, तुमढिग धारी, आनन्दकारी दुगप्यारी। तुम हो भवतारी, करुनाधारी, यात थारी, शरनारी ।श्री।।६। ॐ ह्री श्रीशान्निाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि० स्वाहा । [पच कल्याणक अर्घ]
[सुन्दरी तथा द्रुत विल बित छन्द] असित सातय भादव जानिये। गरभमगल तादिन मानिये। शचि कियो जननी पद चर्चन । हम कर इत ये पद अर्चनन ॥१॥ ॐ ह्रीभाद्रपकृष्णासप्तम्या गर्भमगलमडिताय श्रीशातिनाथायाय॑ । जनम जेठ चदुदशि श्याम है । सकलइन्द्र सू आगत घाम है। गजपुरै गज साजि सवै तवै। गिरि जजै इत मैं जजि हो अबैं॥ ॐ ह्री ज्येष्ठकृष्णाचतुर्दश्या जन्ममगलप्राप्ताय श्रीशातिनाथायाध्य । भव शरीर सुभोग असार है। इमि विचार तबै तप धार हैं। भ्रमर चौदशि जेठ सुहावनी। धरमहेत जजो गुन पावनी ।। ॐ ह्री ज्येष्ठकृष्णाचतुर्दश्या तपमगलमडिताय श्रीशातिनाथायार्थ्य० ।