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उत्तर - वारह अग के सब शास्त्रो का उपदेश मात्र एक ही है कि चैतन्य का उपयोग जो पर की तरफ ढला हुआ है उसे स्व की तरफ मोडकर स्व मे दृढ करना । चारो अनुयोगो मे मात्र उपयोग को मोड करने की बात है । इसी बात को शास्त्रो मे अनेक युक्तियो से समझाया है ।
प्रश्न ४ - ससारी और मुक्त जीवो की क्रिया मे क्या भेद हैं ? उत्तर - चैतन्य का ज्ञान उपयोग यही आत्मा की क्रिया है । निगोद से लगाकर सिद्ध भगवान तक के सभी जीव मात्र उपयोग ही कर सकते हैं । ज्ञाता-दृष्टा के सिवाय अन्य कुछ भी नही कर सकते हैं । भेद मात्र इतना ही है कि मिथ्यादृष्टि जीव अपने उपयोग को पर की तरफ लगा कर पर भावो एकाग्र रहते हैं और ज्ञानी अपने उपयोग को अपने शुद्ध स्वभाव में ढालकर स्वभाव मे एकाग्र रहते है । परन्तु कोई भी जीव ज्ञानोपयोग के सिवाय पर पदार्थों मे कोई भी परिवर्तन असर-मदद नही कर सकते है । अज्ञान दशा मे शुभअशुभ रूप अशुद्धोपयोग कर सकता है। याद रखना - शुभ-अशुभ दोनो मे पर का लक्ष्य होने से अशुद्धोपयोग कहलाता है और स्व को ओर का ज्ञानोपयोग शुद्धोपयोग कहलाता है ।
प्रश्न ५ - बंध-मुक्ति के सम्बन्ध मे क्या सिद्धान्त है ?
उत्तर - पर लक्ष्य से वचन और स्वलक्ष्य से मुक्ति होती है । पर लक्ष्य होने पर शुभभाव हो वह भी अशुद्ध उपयोग ही है ससार का कारण है । जहाँ स्व लक्ष्य है वहां शुद्धोपयोग है मुक्ति का कारण है । प्रश्न ६ - विश्व किसे कहते हैं ?
उत्तर - जीब अनन्त, पुद्गल अनन्तानन्त, धर्म-अधर्म आकाश एक-एक और लोक प्रमाण अशख्यात काल द्रव्य हैं, इन सबके समूह को विश्व कहते है ?
प्रश्न ७ - विश्व की व्यवस्था किस प्रकार है ?
उत्तर- प्रत्येक द्रव्य कायम रहता हुआ, अपनी-अपनी प्रयोजनभूत क्रिया करता हुआ, निरन्तर बदलते रहना । यह विश्व की