Book Title: Jain Siddhant Bhaskar Author(s): Hiralal Professor and Others Publisher: Jain Siddhant Bhavan View full book textPage 9
________________ किरण ३ ! जैममन्त्र - शास्त्र I मंत्र शास्त्र का कहना है कि इसी उपाय - द्वारा मन्त्र सिद्ध हो सकता है । दक्षिण, वाम और मिश्र के भेद से इस शास्त्र में तीन ही मार्गों का उल्लेख मिलता है। सात्त्विक मंत्र सात्त्विक सामग्री- द्वारा सात्विक देवताओं की सात्विक उपासना का नाम दक्षिण अथवा सात्त्विक मार्ग है । जिस मार्ग द्वारा मदिरा, मांस और महिला आदि कुद्रव्यों से भैरव, भैरवी आदि तामस प्रकृति की देव देवियों की आराधना करने का विधान हो वह वाम मार्ग है। इसी प्रकार उक्त मांस-मदिरादि वस्तुओं को प्रत्यक्ष रूप में न ग्रहण कर उनके प्रतिनिधियों द्वारा इष्ट की सिद्धि की जाने का नाम मिश्र मार्ग है । प्रधानतया दक्षिण और नाम ये ही दो मार्ग हैं। साथ ही साथ यह भी जान लेना परमावश्यक है कि वाम मार्ग प्रायः तंत्र शास्त्र का विषय है और कल्प- प्रन्थों में इस मार्ग का विवेचन सर्वधा नहीं मिलता है । वाममार्गी प्रायः भैरव और काली आदि देव देवियों के आराधक होते हैं । नवनाथ ही इनके गुरु हैं और वे गुरुपादुका, श्रीचक्र एवं भैरवचक्र की पूजा किया करते हैं । परन्तु इतना बतला देना आवश्यक प्रतीत होता है कि वाममार्ग का प्रभाव मिश्र मार्ग पर पड़ा ही है; किन्तु दक्षिण मार्ग भी इसके प्रभाव से बच नहीं सका। इसी का परिणाम है कि दक्षिण मार्गी भी पीछे तमः प्रधान देवताओंकी उपासना करने लग गये । दक्षिण मार्ग सात्त्विक होने से एक प्रकट मार्ग है । पर वाम मार्ग असात्विक होने से गुम मार्ग है । इसी से वे प्रायः अपने मार्ग को बतलाने में संकोच करते हैं और प्रारंभ से ही वे “गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः " इस बात को रट लगाते हैं। तान्त्रिक ग्रन्थ प्रायः वाममार्ग को ही पुष्ट करते हैं। पीछे वाम मार्ग का बन अधिक बढ़ जाने से साविक मंत्र एवं सात्त्विक देव देवियों का सिद्ध होना दुःसाध्य सा हो गया। मंत्र शास्त्र से विश्वास उठ जाने का यह भी एक कारण हुआ । - १३६ सम्प्रदाय - मंत्रशास्त्र में केरल, काश्मीर एवं गौड नामक तीन सम्प्रदाय प्रचलित हैं । वैदिक धर्मावलम्बी मांत्रिकों में प्रायः केरल सम्प्रदाय, बौद्धों में गौड और जैनियों में काश्मीर सम्प्रदाय निर्दिष्ट हैं। काश्मीर सम्प्रदाय वाले सरस्वती, पद्मावती आदि साविक देवताओं के उपासक होने से विशुद्ध दक्षिण मार्गी हैं। गौड़ सम्प्रदाय वाले काली तारा आदि तामस प्रकृति की देव देवियों के उपासक होने से वाममार्गी होते हैं । केरल सम्प्रदाय मिश्रमार्गी सम्प्रदाय है। इसमें प्रकट रूप से तो दक्षिण और गुम रूप से वाम मार्ग का आश्रय लिया जाता है । राजस प्रकृति वाली महालक्ष्मी आदि ही इनकी उपास्य हैं । 'कुलार्णव' आदि प्रन्थों में सम्प्रदाय का आश्रय लेना परमावश्यक ही नहीं प्रत्युत अनिवार्य बतलाया गया है। आगम - मार्ग एवं सम्प्रदाय के समान मंत्र शास्त्र में वेदागम, बौद्धागम एवं जैनागम इस प्रकार तीन भिन्न-भिन्न श्रगम वरिणत हैं । जैनागम दक्षिणमार्गावलम्बी एवं काश्मीर सम्प्रदाय प्रधान है। बौद्धागम वाम मार्गावलम्बी एवं गौड़सम्प्रदाय - प्रधान है। बेदागम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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