________________
एक प्राचीन गुटको
१५ वीं रचना 'मनकरहा रासु' है और उसके नमूने इस प्रकार हैं:
-
३
1
"मन करहा जगवनिमहिं भ्रम्यों, चरत विषद् - बन राइ रे | चहुंगति चहुंदिस सो फिर भवतरवर - फल बाई रे ॥ मन० ॥ १ ॥ भरे लख चौरासी महिं रुल्या, करहलु पंचपयारी रे।
सुरनर - पसु - जोणिहिं फिरिऊ, नरय गयो बहुवार रे ॥ मन० ॥ ३ ॥ जरे नित्य इतरंजु निगोदहीं, सात-सात लष मांही रे |
वसु-दस जम्मण-मरण तहां, समझ समझ जुलहाई रे ॥ मन० ॥ ३ ॥
X
X
X
अरे जब जियss सिवपुरु लह्यो, जम्मणु-मरणु न होइ रे । नंतचतुष्टय सुषु घणणं, बसुगुण-मंडित सोई रे ॥ मन० ॥ २४ ॥ गुरु मुनि मादिसैनु हद्द, पद-पङ्कज नमि तासो रे |
सहरि भइ सहिजादपुर, भनत भगौती दासो रे ॥ मन० ॥ २५ ॥”
१६ वीं रचना 'वीरजिन्दि - गीत' शीर्षक है. जिसके आदि - अन्त के छन्द इस प्रकार हैं:
"वीर जिनिंद - समोसर णि जो विपुलाचल गिरि थानि । मेघकुमारि वैर गिओजी, सुनि गुरु गऩहरवानि ॥ मनोहर धरमि महाव्रत यारु, यह संसारो असारु री माई, धरमि महाव्रतभारु ॥ ११ ॥ नवजोवन तू बालिकोजी, अति दुई र जाऊ जोग । बसु रमणी गयगामिणी जो, बहुबिह भुगवद्दु भोगु ॥ - कुमरजी संजुमु दुरद्धरभारु ॥ २ ॥ गुरु मुनिमदिन नमि जी, भनत भगवती दासु । जे नर-नारी गावहिं जी, तेतो उहि कर्मपासु ॥ परम गुरु धनि संयम धारु ॥२२॥ | "
१८३
१७ वीं रचना “रोहिणीत रासु" है और उसका आदि अन्त इस प्रकार है:"पणविवि वीर-वरण गुरुगण गणहरु, अरु सारद सिर न्याऊ । रोहरिणा - विधिरासु अनुपम, मणवत्रि रुचिकर गांऊ' | भविक जण ॥ तासु पसाइकियो मह लहुमति, गेहणिव्रतविधि रासो | अगरवाल अरगल पुर पहणि भनत भगौतीदासो ॥ ४२ ॥"
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com