Book Title: Jain Siddhant Bhaskar
Author(s): Hiralal Professor and Others
Publisher: Jain Siddhant Bhavan

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Page 90
________________ दर्द वैद्य-सार चतुरशीतिवातेषु योजयेन्नात्र संशयः ॥ अमृतसंजीवनो नाम पूज्यपादेन भाषितः ॥ ४ ॥ टीका - शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, लौह भस्म, शुद्ध विष, चित्रक, तेजपत्र, वायविडंग, रेणुका बीज, नागर मोथा, छोटी इलायची, पीपरामूल, नागकेशर, सोंठ, मिर्च, पीपल, त्रिफला, ता की भस्म, इन सबका बराबर-बराबर लेकर सबके दुगुना पुराना गुड़ लेकर गोली बनावे तथा प्रातःकाल में अनुपान - विशेष से सेवन करे तो श्वास, खांसी, राजयक्ष्मा, प्रमेह, शूलोदर, पांडु रोग, बवासीर तथा ८४ प्रकार के वायु रोग शांत होते हैं । यह अमृतसंजीवन रस भी पूज्यपाद स्वामी ने कहा है । १२३ - विबंधे नाराचरसः अष्टौ निस्तुपदं तिबीजशुद्ध भागलयं नागरं । द्वे गंधे मरिचं च टंकणरसौ भागेकमेकं पृथक् ॥ गुञ्जमानमिदं विरेचनकरं देयं च शीतांबुना । गुल्मलीहमहोदरादिशमनो नाराचनामा रसः ॥ १ ॥ टीका - आठ भाग शुद्ध जाम लगा टाके बीज तीन भाग सोंठ, दो भाग शुद्ध गन्धक, काली मिर्च, सुहागा, शुद्ध पारा एक-एक भाग खरल में डाल कर खूब घोंटे तथा एक-एक रती की मात्रा से शीतल जलके अनुपान से सेवन करावे तो इस से गुल्म, प्लीहा और उदररोग शांत होता है | १२४ - शीतज्वरे शीतमातंगसिंहरसः रसविषशिखि तुत्थं खर्परं चैकभागम् | अनलद्विकसमानभागमेतत्क्रमेण ॥ कनकदलरसेन पीतगुंजैकमात्रः । परिमितगुटिकः स्यात् शीतमातंगसिंहः ॥ १ ॥ टीका - शुद्ध पारा, शुद्ध विषनाग तूतिया की भस्म, खपरिया भस्म एक-एक भाग, चित्रक दो भाग इन सब को एकत्रित करके धतूरेके रस से घोंटे तथा एक-एक रती प्रमाण सेवन करे तो इससे शीतज्वर दूर होवे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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