Book Title: Jain Siddhant Bhaskar
Author(s): Hiralal Professor and Others
Publisher: Jain Siddhant Bhavan

View full book text
Previous | Next

Page 87
________________ वैद्य-सार अनुपानविशेषेण सर्वरोगेषु योजयेत् । पथ्या शुंठी गुंडं चानु चार्शरोगे प्रयोजयेत् ॥७॥ तीरानमाज्यं भुंजीत शिघु तोयेन पाययेत् । आर्द्रकस्य रसेनापि यथादोषविशेषिते ॥६॥ शीतज्वर सन्निपाते तुलसीरससंयुतः। उरिचेन सहितश्चासौ सर्वज्वरविषापहः ॥७॥ टीका-शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, सोने की भस्म, सुहागा, सोंठ-मिर्च, पीपल, चित्रक, नीम के बीज, जवाखार, तवकिया हरताल की भस्म, अण्डी के बीज, सेंधा नमक, वड़ी हर्र का छिलका ये सब बराबर-बराबर लेवे और शुद्ध वच्छनाग, पाँच भाग, शुद्ध जमालगोटा २ भाग, इन सब को एकत्रित कर के नेगड़ के स्वरस में घोटे एवं दसदस चावल के बराबर बड़ी इलायची तथा अजमोदा के पानी के साथ देवे तो सब प्रकार के ज्वर शांत होवे। यदि बवासीर रोग में देना हो तो हर्र, सोंठ, गुड़ का अनुपान देवे और दूध-भात का भोजन करावे। शीतज्वर में मुनक्का के काढ़े से तथा अदरख के के साथ, सनिपात में तुलसी के रस के साथ एवं विषमज्वर में काली मिर्च के साथ देवे । यह रस सर्व ज्वरों को नाश करता है। ११६-प्रमेहे बंगेश्वररसः सूतं च बंगभस्मं च नाकुलीबीजमभ्रकम् । शिलाजतु लोहभस्म कनकं कतकवीजकम् ॥१॥ गुडूचीत्रिफलाक्कार्थः मर्दयेद्गुटिका दिनं । बंगेश्वररसो नाम चानुपानं प्रकल्पयेत् ॥२॥ कपित्थफलद्राक्षा च खर्जूरीयष्टिकेन च । नष्टेन्द्रियं च दाहं पित्तज्वरपथश्रमम् ॥३॥ मेहाना मजदोषाणां नाशको नात्र संशयः । सर्वप्रमेहविध्वंसी पूज्यपादेन भाषितः ॥५॥ टोका-शुद्ध पारे की भस्म, बंगभस्म, रासना के बीज, अभ्रक भस्म, शुद्ध शिलाजीत, लौह भस्म, सोने की भस्म, कतक के बीज, निर्मली इन सब का एकत्रित कर के गुर्व तया निकला के काढ़े से दिन भर मर्दन करे तो यह बंगेश्वर रस तैयार हो जाता है। इसको सेवन कराने के लिये वैद्यगण अनुपान की कल्पना करें अथवा कवीट, मुनक्का, खजूद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122