Book Title: Jain Siddhant Bhaskar
Author(s): Hiralal Professor and Others
Publisher: Jain Siddhant Bhavan

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Page 54
________________ भास्कर । भांग १८ वी रचना 'ढमाल राजमती-नेमीसर' का है और उसके नमूने ये हैं : "पंच परम गुरु वंदिवि करि सारद जयकारु । गुरुपद-पंकज पणमौं, सुमति-सुगति-दातारु ॥ सोरठि देसु भला सब देसनिमइ परधानु | महिमंडलि इ राजति जिउ नभ-मंडलु भानु ॥१॥ तहिं नवरी द्वारावति वन-उपवन-आराम । इन्द्रपुरी सुविसेषति हेमरत नई धाम ॥ कंवल-अछादिति बावरि, सीतर बारि रसाल। कूप घने जलपूरित पदमसहित ,सरताल ॥२॥ x x कोटि जतन कोई करिहौ जीवनु सो नित नाहिं। तनु-धनु-जीवनु बिनसह कीरति रहइ जगमांहि ॥६॥ मुनि माहेन्द्रसैन गुरु तिह जुगचरन पसार | भाषत दास भगवती, थानि वपिस्थलि आइ ॥ ६१ ॥ नर-नारी जे गावहिं सुणहि, चतुरदे कानु। भोगवि सुरनर सुहफल पांवहि सिवपुर थानु ॥ ६२॥" १९ वो रचना 'सज्ञानी ढमाल' है और वह इस प्रकार लिखा गया है: "यहु सहानी जीउ जणि अवाणु हुवा हो। धुव दीनों विसराइ राच्यौ तन अधु वाहो ॥ ऐकु तजि विसुषं रेनु, निसि-दिन ऐकु किया हो। ऐक बिना जगमाहि, बहु दुष ऐकि दियो हो ॥१॥ जगमहिं जीवनु सुपना. मन-मनमथु परहरिपे।। लोहु-कोहु-मद-माया, तजि भवसायरु तरिणे ॥ मुणि माहेन्द्रसेणि इह निसि प्रणामा तासो । थानि कपिस्थलि नीकइ भनति भगौती दासो ॥२॥" इस तरह ये रचनायें कवि भगवतीदास जी अग्रवाल की हैं। इनमें आपने जो अपने बारेमें उल्लेख किया है उससे प्रकट है कि देश-विदेश में विहार करते धर्मसाधनमें लीन थे। आप सहजादिपुर के निवासी थे और संकिसा तथा कपिस्थल में भी आकर रहे थे। अन्तिम दोनों ग्राम जिला फरुखाबाद के संकिसा और कैथिया नामक गाँव हैं। सहजाविपुर भी वहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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