Book Title: Jain Siddhant Bhaskar
Author(s): Hiralal Professor and Others
Publisher: Jain Siddhant Bhavan

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Page 50
________________ 150 भास्कर -- जंबूदीउप सिद्धउ लोइ, भरहर्षित्तु दाहिणि दिसि होइ । मगध देसु देसनि-परधानु, गांनभमंडिल सोभद्द भानु ॥ २ ॥ पुव्व पुराणि भणि मुणि आसि, ते सुणि भणिअ भगवती दास । पढ़हि गुणहिजै भवियण लोइ, मुकति-सिरी-फलु पावहिं सोइ ॥ ५० ॥" सातवीं रचना “सुगंधदसमी - कथा" है और उसके नमूने इस प्रकार हैं:"नेमि जिनिंद नमों धरि भाउ, सुमति-सुगति दाता सिवराउ । पुग्नु पणमो सारद सिर न्याइ, रिसि-गुर - गनहर लागौ पांइ ॥ तासु पसाए यह चौपही, दास भगौती लहु-मति कही । पढ़हि गुणहिं जे भवियण लोय, मुकतिसिरी-फल पावहिं सोय ॥ जे नरु सुहिं मणिधरि सुभाउ, भव-भव भूरि पास पाउ ॥ ५१ ॥ " ८ वीं और ९ वीं रचनायें श्रीआदिनाथ और शांतिनाथ जी की बिनती हैं। उनके नमूने भी देखिये : "आदि जिनेसुर देव, नाभिराय -कुल- कमलरबे | तुव त्रिभुवन-कृत सेव, चूरिय कर्म-कलंक सवे ॥ सठि पइडि बिपाइ, केवल सामु उपायतने । धर्माधर्म दिखाइ, वोहिय जीव अवोहघने ॥ १ ॥ X X X गुरु मंखि मांहिदसेणु, रयणत्तय - गुणि- मंडियो । तजि मणिणि अणु, कामु कसाय विडियो ॥ पदपंकज नमि तासु, वीनतड़ी जिणनाह करी । भगत भगवतीदास, शिसुणहु भवियण भाउ धरी ॥ ९ ॥" X X X णाणधरो । अणंगहरो ॥ "परम निरंजणु सोइ, सांति जिणेसरु अवर न त्रिभुवन कोइ, सिंह सम देउ लोहु-कोहु मदु इंडि मोहु-मया तिण पंचमहम्बय-मंडि, उत्तमत्रिमतणि मणि धरिया ॥ १ ॥” परहरिया । X X X "गुरु मुणि माहिंदसैपु तासु चरणजुग वन्दि करी । पाइउ जिण-मगु-रेणु, दास भगौती भाउ धरी ॥ वीनतड़ी यहु लाये, पढ़हिं गुणहिं जे भवियजणा । धामि तिनह धणु होइ, पुणु सिव- सासर- सुक्खधर ॥ १० ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ४ www.umaragyanbhandar.com

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