________________
एक प्राचीन गुटका (सं०-श्रीयुत बाबू कामता प्रसाद जैन )
श्री दि० जैन बड़े मन्दिर मैनपुरी के शास्त्र-भाण्डार को देखने का सौभाग्य हमें कुछ वर्षों पहले प्राप्त हुआ था। उसके कतिपय ग्रन्थरत्नों का परिचय हमने पहले 'वीर' द्वारा पाठकों को कराया था। उनमें महाकवि पुष्पदत्त-कृत यशोधर-चरित्र (अपभ्रंश अपूर्ण) कल्पसूत्र सचित्र ( श्वे० ) आदि ग्रन्थ दर्शनीय हैं। इन्हों में एक गुटका भी उल्लेखनीय है। यह करीब ३०० वर्ष का लिखा हुआ है। जैसे कि उसकी निम्नलिखित प्रशस्ति से प्रकट है:___ "मथ सम्बत्सरे श्रीनृप-विक्रमादित्य-राले। संवतु १६८० जेष्ट मासे शुक्ल पक्ष परवणी नवमी भोम दिने श्रीनरदी जहाँगोरवादिसाहिराज्यवर्तमाने श्रीकाष्ठासंगे माथुरान्वे पुकरगणे भट्टारक श्रीतुणचन्द्रदेवान् । तत्व भदारक श्रीसकलचन्द्रः । तत्प? मंडलाचा माहेन्द्रसेण तत्सिष पंडित भगवतीदालु । तेन इदं संचिका-मध्ये लिपकृताः॥ लिषापित योनीदासु शुभमस्तु ।"
इसमें पहले हो श्रीकुन्दकुन्दाचार्य-प्रणीत ‘पटपाहुढ' टीका-सहित लिखी गई हैं। उपरान्त 'परमात्मप्रकाश' लिखकर 'योगसार' के दोहे लिखे गये हैं, जिनमें आदि-अन्त के ये हैं:"णिम्मल ज्झाण परिडिया, कम्म-कलंक उद्देवि | अप्पालद्धउ जेण परु, ते परमप्प नवेवि ॥१ संसारहं भयभीपण, जोगचन्द मुणिएण। अप्पासंबोहण कयह, दोहा कव्वमिसेण ॥ इति ।"
इसके बाद देवसेन-कृत 'तत्वसार' लिखा गया है, जिसकी प्रारम्भिक और अन्तिम गाथाएँ इस प्रकार हैं:
"माणग्नि-घट्टकम्मे णिम्मल सुविसुद्ध लद्ध-सद्भावे । णमि ऊण परमसिद्ध, सुतव्वसारं पोछामि ॥ सो ऊण सव्वसारं, रइयं मुणिणाह देवसेणेण ।
जो सट्टिी भावद, सो पावर सासयं सोक्खं ॥ ७४॥" फिर द्रव्य-संग्रह लिख कर 'सामायिक समस्त भक्ति तीन-सहित' लिखा है। शायद यह बम्बई के मुनि अनन्तकीति-ग्रन्थमाला-द्वारा प्रकाशित सामायिक ग्रन्थ ही है। उपरान्त 'दाढसी गाथायें' ३८ दी हैं। आदि-अन्त यथावत् समझिये:
"टूटंति पलालहरं, माणुसजम्मस्म पाणियं दिन्न । जीवा जे हिणणाया, णाऊण ण रक्खिया जेहिं ॥१॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com