Book Title: Jain Siddhant Bhaskar
Author(s): Hiralal Professor and Others
Publisher: Jain Siddhant Bhavan

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Page 34
________________ भास्कर 1 माग गया है। ब्रह्मसेन, उस का शिष्य, आर्यसेन, उसका शिष्य महासेन और उसका शिष्य चाकिराज, जो कि केतल देवी का एक कर्मचारी (officer) था। Ref. Ind. ant. XIX, p. XIX, p. 272. (४८) खजराहाँ की एक जैनमूर्ति पर वि० सं० १२१२ का लेख है। उसमें शिल्पकार का नाम कुमारसिंह दिया गया है। Ref. Cunningham archer. Survey India XXI, page 68. (४२) सं० ९८० (1058 A. D) में मुल्लुर को शिलालेख लिखा गया। इसके द्वारा राजेन्द्र कोंगाल्व ने उस बस्ति के लिये एक दान किया जो कि उसके पिता ने बनवाई थी। 'राजाधिराज' की माता, पोचबरसि ने गुणसेन को दान दिया। Vide 1064, A. D. Ref. Ep. Car. I, Coorg Inscrip. (ed. 1914), no. 35. (५०) शक सं० ९८६ (1064 A. D.) में मुल्लूर का शिलालेख लिखा गया, जिसमें गुणसेन की मृत्यु का उल्लेख है जो कि एक प्रधान नैयायिक और वैयाकरण थे। गुणसेन नंदिसंघ, द्रविलगण और अरुङ्गल आम्नाय के पुष्पसेन का शिष्य था। ___Rep. Ep. Car. I, Coorg Inscriptions (ed. 1914) no. 34. (५१) अन्नीगेरि के जैनमंदिर जो कि मैसूर के अन्यान्य जैनमंदिरों के साथ राजेन्द्रदेव चोल के द्वारा जला दिये गये थे, जिनका एक स्थानीय शासक के द्वारा ई० सन १०७० के करीब जीर्णोद्धार किया गया (are restored). _____Ref. Fergusson History of Indian and Eastern architecture (1910 A. D.) Vol. II., p. 23. (५२) राजपूताना म्यूजियम अजमेर में एक खड़ी दिगंबर जैनमूर्ति पर वि० सं० ११३० (1074 A. D.) का लेख है, दूसरी पर ११३७ । Ref. Prog. Rep. of arch. Surv. of India west. cir. for 1915-(P. 35) (५३) गुडिगेरे का टूटा कन्नड जैनशिलालेख का समय शक ९९८(1076 A. D.) है। इस में प्राचार्य श्रीनंदी पण्डित के दानों का वर्णन है। चालुक्य-चक्रवर्ती विजयादित्य वल्लभ (ie. probably Vijayaditya west Chalukya) की छोटी बहन कुंकुम महादेवी ने पहले एक जैनमंदिर बनवाया था, ऐसा इस शिलालेख में उल्लेख है। साथ ही भुवनैकमल्ल-शांतिनाथ देव का भी उल्लेख है, अर्थात् शांतिनाथ एक जैनमंदिर या बिम्ब का जो पश्चिमी चालुक्य सोमेश्वर द्वितीय भुवनैकमल के द्वारा बनाया गया अथवा स्थापित किया गया था। ___Ref. Ind. ant. XVIII, p. 38. (५४) विक्रमसिंह कच्छपघाट का शिलालेख का समय वि० सं० ११४५ है। इस में उन दानों का वर्णन है जो कि दूबकुंड (Dubkunda) के नये बने हुए जैनमंदिर के लिये दिये गये। Ref. Ep. Ind. II, 232, f, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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