Book Title: Jain Siddhant Bhaskar
Author(s): Hiralal Professor and Others
Publisher: Jain Siddhant Bhavan

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Page 15
________________ किरण : सम्मेद शिवरजी की यात्रा का समाचार १५ श्वसुर थे और जिनसे साहु नंदराम का वंश-वृन और वृत्तांत उसे निम्न प्रकार ज्ञात हुआ था: शिवसुखराय कुन्दनदास (दो भार्या) परमसुख नंदराम (पहली भार्या से) धनसुखराय खूबचंद दिलेराय तीनां री से) महाबराय धनमिह नैनसुख सिनाबराय श्यामलाल सोहनलाल विधिचंद्र हजारीलाल हजारीलाल वेनी वेनीराम वंशीधर बिहारीलाल तुलाराम कुखमन उलफतराय साहु धनसिंह जी एक व्यापारकुशल, पुरुयार्थी और धर्मात्मा सजन थे। उन्होंने अपने पिता नंदराम-द्वारा चालिन रुई के व्यापार को खूब तरक्को दी। उनकी दूकानें फर्रुखाबाद, फरिहा, कोटला आदि मई के केन्द्र-स्थानों पर थीं। इस व्यापार में उनको खूब लाम हुआ। यहाँ तक कि उस समय उनके समान कोई दूसरा धनवान् न था। आजतक साहु धनसिंह के धनाढ्य होने की बात लोक-प्रचलित है। पुराने लोग जब कभी अपने निकम्मे लड़के को इन शब्दों में ताड़ना देते मिलते हैं कि “जासे तो तू साहु धनसिंह को बैल होतो नो नीको थो, हुंअन तोय लडुआ-जलेबी तो खान को मिलते।" इस जनश्रुति से रुइया लोगों की समृद्धिशालीनता का पता चलता है। लेखक ने उनकी गगनचुम्बी विशाल 'हवेली' का एक अंश देखा था; किंतु आज वह भी धराशायी है और अपने गर्म में अज्ञात सम्पत्ति को लिये हुई अनुमानी जाती है। उसका वर्तमान धंस-रूप मानो यही चेतावनी देता है कि 'दुनियां के लोगो, घमण्ड न करो–यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है।' धनाढ्य होने के साथ ही साह धनसिंह धामा सज्जन थे। वह निरंतर धर्म-कार्यों को करने में आनन्द मानने थे। उनके शेष तीन माई भी उन्हीं के अनुरूप धर्मी-कर्मी और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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