Book Title: Jain Siddhant Bhaskar
Author(s): Hiralal Professor and Others
Publisher: Jain Siddhant Bhavan

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Page 21
________________ inte में जैन धर्म बंगाल (लेखक – श्रीयुत सुरेशचन्द्र जैन, बी० ए०) बंगाल में जैनधर्म की गति विशेष रही है। वहाँ मानभूम सिंहभूम, वीरभूम और वर्दवान इन चारों जिलों के नामकरण भगवान् महावीर या वर्द्धमान के नाम के आधार पर ही हुए हैं। चौबीस तीर्थकरों में से बीस ने हजारीबाग जिला के अंतर्गत पार्श्वनाथ पहाड़ के सम्मेदशिखर पर से निर्वाण प्राप्त किया है । 'आचारांग सूत्र' से विदित है कि राढ़ देश के जमूमि और सुम्भमूमि नामक प्रदेशों में विहार करते हुए भगवान महावीर को अनेकानेक कठिनाइयां उठानी पड़ी थीं; उन्हें कठोर यंत्ररणायें सहन करनी पड़ी थीं और कठिन से कठिन कार्य करने पड़े थे । यह प्रदेश यात्रियों के लिए दुर्गम था और मुनियों के प्रति यहाँ के निवासियोंका व्यवहार अत्यन्त ही क्रूर एवं करुरगोत्पादक था । ये लोग निस्सहाय मुनियों के पीछे कुत्तों को छोड़ देते थे और इनसे अपनी रक्षा करने के हेतु असहाय मुनियां को बांस की • फराठियों का सहारा लेना पड़ता था । अत एव यह ज्ञात होता है कि वर्द्धमान महावीर के समय में बंगाल में जैनधर्म की जाप्रति, प्रगति तथा उन्नति हो रही थी । सन् ९३९ ई० पूर्व में श्रीहरिषेण ने 'वृहत् कथा - कोष' नामक एक महान् ग्रंथ रचा था । उससे प्रकट है कि सुविख्यात जैनाचार्य एवं मौर्थ्य सम्राट् चन्द्रगुम के राजगुरु श्रीमद्रबाहु जी पुंडूवर्धन देशांतर्गत देव कोटी नगरी के रहने वाले एक ब्राह्मण के पुत्र थे । एक दिन जब भद्रबाहु अपनी बाल्यावस्था में देवकोटि के अन्य बालकों के साथ क्रीड़ा कर रहे थे तब चतुथ श्रुतकेवली श्रीगोवर्धन ने उन्हें देखा था और उनको देखते ही उनके मन में इस बात की पूर्ण धारणा हो गई थी कि यह बालक पंचम श्रुतकेवली होगा । ऐसी धारणा मन में उत्पन्न होते ही उन्होंने श्रीभद्रबाहुजी के पिता की अनुमति से उनको तत्काल ही अपनी हिफाजत में रख लिया और कुछ समय बाद यही बालक पञ्चम श्रुतकेवली के रूप में श्रीगोवर्धनजी का उत्तराधिकारी हुआ । पुण्ड्रवर्धन ग्राम में एक निर्मन्थ के दोष के कारण अट्ठारह हजार मनुष्यों की हत्या का जो वर्णन 'दिव्यावदान' नामक बौद्धग्रन्थ में किया गया है उसकी सत्यता पर विश्वास हो अथवा नहीं परन्तु उससे इतना पता तो अवश्य मिलता है कि तृतीय शताब्दी के पूर्व में उत्तरीय बंगाल जैनियों से भरा था। 'अंगुत्तरनिकाय' के सोलह महाजन पदों में जिन भिन्न-भिन्न देशों का गिनाया गया है। उससे अंग और मगध की गणना पूर्वीय प्रांतों में की गई है। जैन 'भगवती सूत्र' के मी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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