Book Title: Jain Siddhant Bhaskar
Author(s): Hiralal Professor and Others
Publisher: Jain Siddhant Bhavan

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Page 31
________________ किरण ३ ऐतिहासिक प्रसंग नन्दी को (अनन्दी सकलचंद्र सिद्धान्त के शिष्य अप्पपोटि का शिष्य था), जो कि अडकल गच्छ और बलहारि गरण का था, सर्वलोकाश्रय जिन-भवन के हितार्थ दान किया था (Kaluchumbarru grant), उसके फौजी जनरल दुर्गराज ( कटकाधिपति विजयादित्य के पुत्र) ने“ Whose sword always served only for the protection of the fortune of the chalukyas and whose renowned family served for the support of the excellent great country called Vengi" धर्मपुरी के निकट कटकाभरण नाम का जिनालय बनाया और उसका अधिकार श्रीमन्दिरदेव (Srimandiradeva) को, जो कि ‘दिवाकर' का (जो कि नन्दिगच्छ कोटिडुंब (?) गए और यापनीय संघ के जिननन्दि का शिष्य था ) शिष्य था, दिया । मलियापुंडि का दानपत्र (grant ) एक गाँव के दान का उल्लेख करता है जो अम्मा द्वितीय ने इस जिनमंदिर के वास्ते दिया था । Ref. D. C. 90. Ep. Ind. VII, 179, Ibid, IX, 49-50. १६१ (२८) 949 AD. War between the Rastrakuts and cholas. Hostility between the rival religious, Jainism and Hinduism in the Deccan leads to the introduction of much bitterness into the wars of this period. Ref. Smith Early History of India (1914) P. 429. (२९) विक्रम सं० १०११ (२ अप्रैल दिन सोमवार में खजराहाँ ( रियासत छतरपुर) का शिलालेख लिखा गया । ( it records a number of gifts by Pahilla) इस लेख में पाहिल... • के द्वारा, " who is held in honor" by King Dhanga Chandella जिननाथ के मंदिर के लिये (in favour of the temple of Jinanath) दिये हुए अनेक दानों का उल्लेख है । Ref. Ep. Ind. I. 135-6. महेन्द्रचन्द्र ने, जो संभवतः ग्वालियर के निकट है) में (३०) वि० सं० १०९३ ( 956 A. D. ) में माधव के पुत्र ग्वालियर का राजा था, एक जैनमूर्ति सुहम्य Suhamya (जो अर्पण की । Ref. Jr. Asiatic Soc. Beng. XXXI, P. 399. (३१) विक्रम संवत् १०३४ (977 A. D.) । सुहम्य ( Suhamya) की जैनमूर्ति पर एक शिलालेख है जो वज्रदमन कच्छपघाट के समय का है। Ref. Jr. Asia. Soc. Beng. XXXI, P. 393, 401. (३२) शक संवत् ९०० में चामुण्डराज ( मंत्री पश्चिमी गंगराज राचमल्ल) ने अपना पुराण, समाप्त किया । Ref. Ind. ant. XII. 21. Inscrip. at Sr. Bel. no. 75, 76, 77 85 and pp. 22, 25, 33, 34. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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