Book Title: Jain Siddhant Bhaskar
Author(s): Hiralal Professor and Others
Publisher: Jain Siddhant Bhavan

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Page 8
________________ भास्कर । भाग शास्त्र के सब से अधिक ग्रंथ मल्लिषेण आचार्य के पाये जाते हैं। आप बड़े मन्त्रवादी थे। स्वरचित 'महापुराण' में आपने अपने को खास तौर से 'गारुडमन्त्रवादवेदी' लिखा है। आपके भैरवपद्मावतीकल्प से यह भी स्पष्ट सिद्ध होता है कि आप सरस्वती से कोई वर भी प्राप्त किये हुए थे। इस बात को आप उक्त ग्रन्थ में 'सरस्वतीलब्धवरप्रसादः' इस पद्यांश से व्यक्त किया है। इस बात की सूचना अन्यान्य ग्रंथों से भी मिल जाती है। आचार्य मल्लिषेण 'उभय-भाषा-कविशेखर' 8 की पदवी से अलंकृत थे। आप जिनसेनाचार्य के शिष्य एवं अजितसेनाचार्य के प्रशिष्य थे। आपका समय विक्रम की ११वीं तथा १२वीं शताब्दी है। क्योंकि आप का 'महापुराण' शालिवाहन शक ९६९ (वि० सं० ११०४) में बन कर समाप्त हुआ था। (१) विद्यानुशासन (२) ज्वालिनीकल्प (३) भैरवपद्मावती-कल्प (४) मारतीकल्प (५) कामचाण्डालिनी-कल्प (६) बालग्रह-चिकित्सा ये छः ग्रन्थ इन्हीं की कृतियाँ हैं। इनमें विद्यानुशासन ही आप के मंत्रशास्त्र का सब से बड़ा ग्रन्थ है। इसमें २४ अधिकार तथा ५ हजार मंत्र हैं। मगर इन्द्रनंदियोगीन्द्र-द्वारा रचित वालिनीमत या ज्वालिनी-कल्प लगभग इससे भी एक शताब्दी प्राचीन है। यह इन्द्रनन्दि बप्पनन्दि के शिष्य तथा वासवनंदि के प्रशिष्य थे। यह तो जैनमंत्र साहित्य की बात हुई; इसी प्रकार बौद्धसाहित्य में ताराकल्प, वसुधाराकल्प और घण्टाकर्णकल्प आदि अनेक ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं। वैदिक साहित्य में तो इस मन्त्रशास्त्र का एक अलग भाण्डार ही है। __ अब मंत्र-साहित्य के प्रत्येक अंगोपांग के पारिभाषिक शब्दों पर सामूहिक रूप से प्रकाश डाला जाता है : कल्पग्रन्थ-जिन ग्रंथों में मंत्र-विधान, यंत्रविधान, मंत्रयंत्रोद्धार, बलिदान, दीपदान, आह्वान, पूजन, विसर्जन एवं साधनादि बातों का वर्णन किया गया है वे कल्प-प्रन्थ कहलाते हैं। तंत्र-ग्रन्थ-जिनमें गुरु-शिष्य की संवादरूप से मंत्र-यंत्र, तन्त्र, औषधी आदि बातों का उल्लेख हो वे तंत्र-ग्रंथ से अभिहित होते हैं। पद्धति-ग्रन्थ-जिन ग्रन्थों में अनेक देव-देवियों की साधना का विधान बतलाया गया है उनकी पद्धति-ग्रन्थ से प्रसिद्धि है। बीजकोष-मंत्रों के पारिभाषिक शब्दों को समझने की पद्धति दिखला कर एक एक बीज की अनेक व्याख्या की गयी हों उन्हें बीजकोश या मंत्रकोश कहते हैं। मार्ग-मन्त्र-शास्त्र में मन्त्र सिद्ध करने का मार्ग भी मिन्न भिन्न वर्णित हैं। क्योंकि * कई प्राचीन प्रतियों में इनको उपाधि 'उभवभाषाकविचक्रवर्ती, भी उपलब्ध होती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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