Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1919 Book 15 Author(s): Mohanlal Dalichand Desai Publisher: Jain Shwetambar Conference View full book textPage 9
________________ મુનિ મહારાજાઓને અપીલ. मुनिमहाराजाओने अपील. [श्री राजपूताना जैन श्वेताम्बर प्रान्तिक कॉन्फरन्स (सभा) ना मंत्री अमने नीचेनी अपील प्रसिद्ध करवा फरमावे छे, तेथी प्रकट करोए छीए.) पूज्यवर्य, श्री रा० जै श्वे० प्रा० कान्फरैन्स का प्रथम अधिवेशन मिती आसोज बुदि ९-१० सम्बत १९७५ को श्री पार्श्वनाथ स्वामी के तीर्थ पर अर्थात् फलोधी (मारवाड ) में स्वर्गीय राय बाबू बद्रीदासजी वहादुर मुकीम कलकत्ता निवासी के सुपुत्र बाबू राज कुमारसिंहजी की अध्यक्षता में हुवा. जिसमें अन्यान्य प्रस्तावों के साथ ही साथ निम्नोक्त प्रस्ताव भी सर्व संमत्यानुसार पास हुवा। __. “ यह कान्फरेन्स धर्म प्रचार तथा नैतिक सुधार के लिये मुनि महाराजाओं का इस राजपूताना प्रान्त में विचरना अति आवश्यक समझती है । मुनि महाराजाओं का तथा साध्वीयों का इस प्रान्त की ओर कम ध्यान देखकर खेद प्रकट करती हुइ उनसे सविनय प्रार्थना करती है कि शासनोन्नति के लिये मुनि गण इस प्रान्त में कठिन परिसह होते हुवे भी विचरें !" पूज्यवर्य ! यह पत्र राजपुताने के संघ की ओर से आपकी सेवा में मेजा जाता है और राजपूताना निवासी सर्व संघ के विचार तथा इच्छा प्रकट करता है। पूज्यवर्य से यह बात छिपी नहीं होगी कि समस्त भारत की जैन जाति का लगभग एक तिहाई भाग इसी प्रान्त में रहता है. और मुख्य करके श्वेताम्बर जैनियोंका तो यह प्रान्त घर ही है. जैनियों में सब से बडी औसवाल जाति जो आज प्रायः सर्व ही प्रान्तों में पाई जाती है उसका यह जन्मस्थान ही है. किसी काल में तो इस प्रान्त के ग्राम २ में मुनिराजों तथा साध्वीयों का चातुर्मास तथा विहार हुवा करता था पर खेद के साथ लिखना पडता है अर्वाचीन काल में जैन जाति बडे भाग की ओर से हमारे परम पूज्य धर्मनेता मुनिगण उदासीन ही हो बैठे हैं। जहां गुजरात प्रान्त के एक एक नग्र में बीस २ मुनिगण चातुर्मास करते हैं वहां के छोटे २ ग्राम निवासी भी मुनिगणों के सदुपदेश से भरे हुवे अमृत बचनों का सदैव पान करते हैं. और यह प्रान्त जैन श्वेताम्बर जाति का घर न जाने किस हीन कर्मोदय से मुनिगणों द्वारा केवली भगवान के तारने वाले वचनोसें नीरा वंचित ही रहता है। ग्रामोंका तो कहना हि क्या ? बडे बडे नग्रमी सुनिगणों के चातुर्मास से बौं खाली रह जाते हैं।Page Navigation
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