Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1919 Book 15
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 10
________________ जैन श्वेतin२ -३२- २३८४. पूज्यवर्य! जिनशासन के लिये इसका नतीजा अति अहितकर हुवा है. संघ में से भक्ति, श्रद्धा, तथा धार्मिक ज्ञान दिन प्रति दिन कम होता जाता है. जैन धर्म के तत्वों से तो लोग अनभिज्ञ ही होगये हैं. कई जिन मंदिर अपूज, बेसम्हाल पडे हैं. धर्म से प्रेम तथा धर्म श्रद्धा कम होती जाती है. स्वधर्मी वात्सल्य, लोक सेवा, धर्मप्रचार, परोपकार इत्यादि सम्यक के गुणोंका दिन २ हास हो रहा है. धर्म कार्यों में पैसा खर्च नहीं होता वरन् उसके विपरीत पाप कार्यों में पैसा दिल खोल खर्च किया जाता है. धर्मानुसार आचरण नहीं रहा. कहां तक लिखा जावे सब कुछ दिन प्रतिदिन भ्रष्ट होता जाता है. अहिंसा व्रत (दया) को तो इस प्रान्त के लोग यहां तक भूलगये हैं कि अपनी छोटी २ कन्याओं को ब्याह कर उन पर अथवा उनके बालक पति पर अल्पायु ही में इस कराल काल का आक्रमण कराते हैं. या बूढ़ों के साथ छोटी २ कन्याओं को बांधकर उन अणसमज कन्याओं के लिये वैघन्य को आमंत्रण देते हैं. दयालु मुनिगण ! यदि आप एक दफ। मर्दुम शुमारी की रिपोर्ट को देखे तो आपको झात होगा कि इस प्रान्त में इस दयाधर्मी औसवाल जाति का क्या हाल होरहा है. प्रति एकसौ सोहागिन स्त्रीयों के साथ पोनसो विधवा स्त्रियों की ओसत आती हैं. जिन में से कई की तो उदर पूर्ति तथा लगभग सबही की धार्मिक शिक्षा का कोई उचित प्रबन्ध नहीं है. पूज्यवर्य ! यह एसी बात नहीं है कि जिस तर्फ करुण। सागर मुनिगणों का ध्यान न आकर्षित हो । विधवाओं की अधिक संख्या होने से केवल जैनियों की संख्या ही कम नहीं होती पर आजकल का समय देखते हुवे जाति के चारित्र पतन का भी भय होता है. जहां चारों ओर विलास प्रियता, ऐश आराम इत्यादि पश्चिमी सभ्यता का दौर दौरा है, जहां जाति में प्रत्येक हर्ष के अवसर पर पतितचारित्रा वेश्या का मान है, जहां धनके मद में, शिक्षा के अभाव में, तथा पंचायतियों की अशक्ति के कारण कुचारित्र मनुष्यों की संख्या बढती है, धार्मिक ज्ञान तथा धर्म के तत्वों पर जहां जागृत श्रद्धा है ही नहीं, जहां पुरुष अपनी आखिरी मंजिल में अर्थात् वृद्धावस्था में भी एक कम उम्र भोली कन्या के साथ शादी करने से बाज नहीं रहते हैं, तथा एक के बाद एक इस तरह से तीन चार विवाह करते हैं, ऐसी दशा में इन वाल विधवाओं की बड़ी संख्या के लिये अपने सतीत्व धर्म का पालन करना दिन प्रतिदिन कठिन होता जाता है. पूज्यवर्य ! कम से कम इस जडवाद के

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