Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1919 Book 15
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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મુનિ મહારાજાને અપીલ.
૧૧
प्रतिरोध के लिये, कुचारित्र पुरुषों की संख्या घटाने के लिये, अल्पायु में युवकों के प्राण रक्षा के लिये, प्रसूति के समय अल्पायु होने के कारण माताओं के मरने को अथवा जन्मरोगणी होकर सर्वदा के लिये दुःखों के पात्र होने से रोकने के लिये आप अहिंसा धर्म का प्रचार कर सक्ते हैं. यदि पशु पक्षी तक जैन दयाके तथा मुनिगणों की हिमायत के पात्र हों तो क्या अभागे मनुष्य और विशेष कर परमात्मा वीर ही के उपासक इस दया या हिमायत के पात्र नहीं ? कम से कम शासन को जीवित रखने के हेतु मुनिगण को इस ओर ध्यान देना चाहिये. पूज्यवर्य ! सन् १९०१ से १९११ तक अर्थात केवल १० वर्ष की अवधि में इस प्रान्त में २ प्रतिशत जैनी कम होगये हैं और कई रयासतों में तो १५ से २० प्रतिशत जैनियों की संख्या घट गई है. जहां प्रत्येक जैनी को धार्मिक ज्ञान अथवा सांसारिक ज्ञान के लिये शिक्षित होना चाहिये उनके विपरीत लगभग आधे पुरुष और ९८ प्रतिशत स्त्रीयां तो केवल निरक्षर भट्टाचार्य ही हैं, जहां संयमी जीवन व्यतीत करते हुवे जैनियों को दीर्घायु पाना चाहिये वहां असंयमी जीवन के कारण हमारी ओसत आयु केवल २५ वर्ष की ही रह गई है. जहां पूर्वकाल में हमारे धनी अपनी लक्ष्मी खर्च करके आबू के दिलवाडे के जैसे मंदिर बनवाते थे वहां आज हमारे धनिकों का द्रव्य बिलास प्रियता में खर्च होजाने के कारण अपनी जाति के बालकों की शिक्षा के लिये भी नहीं मिलता. कहांतक कहा जावे ? हमारा नैतिक जीवन दिन दिन बिगडता जारहा है ।
पूज्यवर्य ! इन उपरोक्त त्रुटियों को दूर करने के लिये मुनिगण के उपदेश तथा प्रयास की बहुत आवश्यक्ता है. मुनिगण अपने चारित्र बल से शिक्षा प्रचार के लिये जिस से अन्य सब रोग दूर होसके हैं बहुत कुछ कर सक्ते हैं. राजपूताने के घर घर में शिक्षा का प्रचार करा देना मुनिगण के लिये दुर्लभ नहीं है. जब हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि धार्मिक महोत्सवों के लिये मुनिगण के उपदेश से हजारों रुपये व्यय हो जाते हैं तो हम ये कल्पना नहीं कर सक्ते कि शिक्षा प्रचार के लिये कि जिस पर हमारा धर्म, कर्म और सारा जीवन ही निर्भर है उनके प्रयास निष्फल हों. सत्य तो यह है कि त्यागियों के उपदेश का प्रभाव अतुलनीय होता है.
पूज्यवर्य ! यदि मुनिगण इस प्रान्त को आजकाल की भांति छोड ही देगें तो शासन को बडा नुकसान पहुंचेगा. इस जैन धर्म की हानि और जाति के