Book Title: Jain Shasan 2008 2009 Book 21 Ank 01 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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श्रभद्रसेन
.१०८ धर्म स्थान शासन (अ6पाडs) विशेषis • ता. ४-११-२००८, मंगणार • वर्ष - २१ .i-1
श्री भद्रसेन
44.
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उज्जैन नगरी में एकबार साधू समुदाय के साथ पू. संसार का मोह नहीं है और भद्रिक है। उसे दीक्षा दीजीये।' भाचार्य श्री चंडरुद्राचार्य पधारे हैं । कर्मयोग से आचार्य श्री अन्य मित्रो ने यह सुनकर हाहाहीही करके त ली बजाकर शिष्यो की स्खलना सहन न कर पाते थे। इससे उनको बड़ा उसमें साथ दीया । आचार्यश्री समझ चुके थे कि ये युवक की
:ख पहुँचता और वे क्रोधित हो उठते । वे बराबर समझते थे जवानी का यह विनोद - मजाक है। कि यह क्रोध उनका दोष है लेकिन दूसरो का हित करते हुए
उन्होंने भद्रसेन को पूछा, 'बोल भाई ! तेरी क्या इनका अपना चुक जाता है - यह भी समझते । ऐसे दोष के
इच्छा है?' भद्रसेन ने मजाक में कहा, 'हामहाराज! बात सच प्रसंग बार बार न हो इसलीये समुदाय से थोडी दूरी पर अपना
है संसार में कुछ सार नहीं है। मुझे दीक्षा देदो तो मेरा कल्याण निवास रखते थे। उस प्रकार वे अपने समुदाय से थोडी दूरी होजायेगा और सुखपूर्वक रह पाऊंगा।' और एकांत भाग मेजप-तप तथा ध्यान आदिधार्मिक प्रवृति में
आचार्यश्री इन युवकों का विनोद समझ चुके थे ठेथे।
लेकिन इन युवकों को पाठ पढ़ाना ही चाहीयें - ऐसा मानकर ____ उस दिन गाँव के पाँच-सात ऊच्छंखल युवक
भद्रसेन को कहा, 'अरे भाई ! तुझे दीक्षा लेनी ही है न ?' मजाक मस्ती करते हुए वहाँ आ पहुंचे।
भद्रसेन दुबारा मजाक मे ही कहता है,' महाराज! पलटे वह एक दूसरे की मजाक करते करते एक युवक ने दूसरे दूसरे! दीक्षा लेनी ही है, चलीये देदीजीये, मैं तैय रहूँ।' एक युवक भद्रसेन को दीक्षा लेने की बात कही । दूसरे
श्री चंडरुद्रसूरिजी एक दूसरे युवको को थोडी दूर भवयुवकों ने 'हाँ... हाँ... मजे की बात तो यह है कि भद्रसेन
पडी राख भरी मिट्टी के कुण्डी पडी हैं, वह लाने को कहते है। तो है भी भद्रिक । व्रत-तप करता है। साधू-संतो की भक्ति
वह युवक ला देता है और भद्रसेन के सिर पर मलकर आचार्य करता है, वह साधू बन जाये तो अच्छा ।' यों दिल्लगी-हँसी
उसके केशकालोच कर डालते हैं। आचार्य श्री कारोष उनकी करते हुए वे साधू समुदाय के पास गये और कहा, 'साहब, यह
मुखमुद्रा देखकर युवक स्तब्ध हो जाते है और यह तो लेने के भद्रसेन दीक्षा का भाविक है इसका सिर मुण्ड डालीये।' यह
देने पड गये यूं मानकर भागने की तैयारी की और भद्रसेन को सुनकर दूसरे हँसीटछा करने लगे। साधूसमझ गये कि ये युवक
कहा, 'चल अब बहुत हो गया । साधुओं को अधिक सताने में मात्र हाहाठीठी करने आये हैं । साधू समुदाय ने अंगूलीनिर्देश सारनहीं हैं, चल हमारे साथ, दौड... भागचलें।' करते हुए कहा, 'भाइयों ! हमारे गुरुदेव आचार्य श्री .
... भद्रसेन अब घर जाने के लिए ना कहता है, उसके
. वहाँ बैठे हैं, वहाँ जाओ और उनको अपनी बात .
. हृदयमें निर्मल विचारणा जाग उठी है । वह मन ही ताओ।'
कहता है कि 'मैं अब घर कैसे जाऊं ? मैंने स्वयं इस प्रकार वह टोली आचार्य
मांगकर व्रत स्वीकारा है । अब भागूंगा तो मेरी धंडरुद्रसूरिजी के पास पहुंची और कहा, 'महाराज ! यह
खानदानी लज्जित हो जायेगी मेरा कुल कलंकित बनेगा। हमारा दोस्त भद्रसेन ! इसने हाल ही में ब्याह किया है पर | अब तो मैं विधिपूर्वक गरुमहाराज से व्रत लेकर मेरी आत्मा का
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