Book Title: Jain Shasan 2008 2009 Book 21 Ank 01 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 184
________________ सुबुद्धि मंत्री वि.सं. २०६४, मासो सुE-७, मंगलवार . ७-१०-२००८.१०८ धर्म था विशेष अच्छा है वह अच्छा ही है और जो बुरा है वह बुरा ही है। उसका स्वभाव परिवर्तन होजावे ऐसा तो होता होगा क्या? राज के कथन पर से सुबुद्धि को लगा, 'वस्तुमात्र परिवर्तनशील है' यह बात राजा जानता नहीं है; सो मुझे प्रत्यक्ष प्रयोग करके दिखाना चाहिये के जैन सिद्धांत में कही वस्तु का स्वरुपबराबर समझना चाहिये? ऐसा विचार करके मंत्रीने बाजार से नौ कोरे घड़े मंगवाये और सेवकों द्वारा उस गंदी खाई का पानी उन घड़ो में छानकर भरवाया । तत्पश्चात घड़े सात दिन तक बराबर बंद करके रखे। तत्पश्चात अन्य नौघडे वह पानीछान कर भरवाया । इस प्रकार लगातार सात सप्ताह तक किया। सातवें सप्ताह उस पानी को वर्ण, गंध, रस और स्पर्श स्वच्छ से भी स्वच्छ पानी जैसा हुआ। उस उत्तम पानी को-जल को ज्यादा उत्तम बनाने के लिये सुबुद्धिने उसमे सुगंधित और द्रव्य मिलाये और राजा के सेवकों को वह पानी दिया और वह पानी भोजन समय पर राजा को देने की सुचना दी। राजा ने भोजन किया, राजा के सेवको ने वह पानी दिया । भोजन पश्चात राजा ने पानी के खूब बखान किये और भोजन करने साथ में बैठे हुए मनुष्यों को कहा, 'हमने जोपानी इस समय पिया वह उत्तमोत्तम है। क्या उसका स्वाद! क्या उसका रंग! क्या उसकी सुगंध और क्या उसकी हीम से भी अधिक शीतलता ! मै तो ऐसे पानी को सर्वश्रेष्ठ जल कहताहूँ' प्रशंसा करते करते राजाने सेवक को पूछा, 'यह पानीतूकहाँसे लाया?' सेवक बोला : 'महाराज ! यह पानी मंत्रीश्वर . के यहाँ से आया है। राजा ने सुबुद्धि को बुलाकर . पूछा, 'तूइतना अच्छापानीकहाँ से लाया?' " राजा ने विस्मय से पूछा : 'क्या उसी गंदी खाई का है?' सुबुद्धि ने कहा : 'महाराज! यह उसका ही पानी है। जैन शासन कहता है - वस्तु मात्र परिवर्तनशील है। जब आपने भोजन के बखान किये और पानी की निंदा की तब आपके जैन सिद्धांत का परमार्थ समझाने का मैंने प्रयत्न किया मगा आपके मानने में यह बात आयी नहीं, इसलिये मैंनेखाई के गई पानी पर प्रयोग प्रत्यक्ष कर दिखाया ।' तथापि राजा का सुबुद्धि मंत्री की बात पर विश्वास न आया। उसने अपने देखरेख में खास आदमियों द्वारा जल मंगवाकर सुबंद्धि मंत्री के कहे अनुसार वह प्रयोग कर देखा । इसके बाद उसे पूरा भरोस बैठ गया कि सुबुद्धि का कहना पूर्णस्वरूपेण सही है। इसली उसने सुबुद्धि को बुलाकर पूछा : 'वस्तु के स्वरुप विषय का ऐसा ज्ञान तुमने पाया कहाँ से ?' सुबुद्धि ने नम्रता से कहा, 'प्रभु जिनेश्वर देव के वचनों से मैं वह सिद्धांत समझा हूँ। इस कारण सुन्दर चीजें देखकर मै उत्तेजित नहीं होता, और खरा चीजें देखकर उब भी नहीं जाता । वस्तु के पर्यायों का यथा ज्ञान होने से विवेकी आत्मा अपना समभाव टिकाकर बराक मध्यस्थ रह सकती है। इससे रागद्वेष तथा कषायों के योग मलिनता उनकी आत्मा में प्रवेशनहीं करती।' श्रमणोपासक सुबुद्धि मंत्री की ऐसी उमदा बातें सुनकर राजा को जैन सिद्धांत का रहस्य समझने की तीन उत्कण्ठा हुई। तत्पश्चात सुबुद्धि मंत्री ने राजा को जैन सिद्धांत में रहे जीवादि तत्त्वों का रुप समझाया । राजा ने जैन धर्म . अंगीकार किया। क्रमश : सद्गुरु की निश्रा में रत्नत्रयी की • आराधना करके उन दोनों ने कर्म क्षय करत मुक्तिपदपा लिया। . सुबुद्धि ने जवाब दिया, 'महाराज ! यह पानीवही गंदीखाई का ही है।'

Loading...

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228